ओणम का त्यौहार क्यों मनाते हैं इसका महत्व

| ओणम का त्यौहार क्यों मनाते हैं इसका महत्व |

ओणम का त्यौहार क्यों मनाया जाता है इसका क्या महत्व है

ओणम केरल का महत्वपूर्ण त्यौहार है लेकिन इसकी धूम अन्य राज्यों में भी रहती है इस त्यौहार की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इस दिन लोग मंदिर  में पूजा अर्चना नहीं करते बल्कि घर में ही पूजा करते हैं इस पर्व के संदर्भ में यह कहा जाता है कि केरल में महाबली नाम का एक असुर राजा था जिसके आदर में लोग यह पर्व मनाते हैं

लोग इसे फसल और उपज के लिए भी मनाते हैं और यह 10 दिन के लिए मनाया जाता है इस दौरान  “ सर नौका दौड़ के साथ कथकली नृत्य और गाना भी होता है ” श्रावण के महीने में ऐसे तो भारत के हर भाग में हरियाली चारों ओर दिखाई पड़ती है किंतु केरल में इस महीने में मौसम बहुत ही सुहाना हो जाता है फसल पकने की खुशी में लोगों के मन में एक नई उमंग नई आशा और नया विश्वास जागृत होता है

इसी प्रसंता में श्रावण देवता और फूलों की देवी का पूजन हर घर में होता है केरल में ओणम का त्यौहार बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है जिस तरह दशहरे में 10 दिन पहले रामलीला का आयोजन होता है उसी तरह से 10 दिन पहले घरों को फूलों से सजाने का कार्यक्रम चलता है हर साल श्रावण शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि को मनाया जाता है | ओणम का त्यौहार क्यों मनाते हैं इसका महत्व |

ओणम का त्योहार कैसे मनाते हैं

केरल में इस त्यौहार से 10 दिन पूर्व इसकी तैयारियां शुरू होती हैं हर घर में एक फूल ग्रह बनाया जाता है और कमरे को साफ करके इसमें गोलाकार रूप में फूल सजाए जाते हैं ओणम के पहले 8 दिन फूलों की सजावट का कार्यक्रम चलता है नौवें दिन हर घर में भगवान विष्णु की मूर्ति बनाई जाती है उनकी पूजा की जाती है तथा परिवार की महिलाएं इस के चारों ओर नाचती हुई तालियां बजाती हैं रात को गणेश जी और श्रावण देवता की मूर्ति बनाई जाती है बच्चे वामन अवतार के पूजन के गीत गाते हैं मूर्तियों के सामने मंगल दीप जलाए जाते हैं पूजा अर्चना के बाद मूर्ति विसर्जन किया जाता है

भोजन को कदली के पत्तों में परोसा जाता है इसके अलावा सांभर  भी बनाया जाता है पापड़ और केले के चिप्स बनाए जाते हैं दूध की खीर का विशेष महत्व है दरअसल यह सभी पार्क व्यंजन नींबू दारी ब्राह्मणों की पाक कला की श्रेष्ठा को दर्शाते हैं तथा उनकी संस्कृति के विस्तार में अहम भूमिका निभाते हैं इस त्योहार पर केरल में 18 प्रकार के दुग्ध पकवान बनते हैं इनमें कई प्रकार की दालें व चना के आटे का प्रयोग विभिन्न व्यंजनों में किया जाता है  केरल में मनाया जाने वाला यह त्योहार हस्त नक्षत्र से शुरू होकर श्रावण नक्षत्र तक चलता है | ओणम का त्यौहार क्यों मनाते हैं इसका महत्व |

ओणम के त्योहार पर महाबली की पूजा

10 दिवसीय इस त्योहार पर लोग घर के आंगन में महाबली की मिट्टी की बनी त्रिगुणात्मक मूर्ति पर अलग-अलग फूलों से चित्र बनाते हैं प्रथम दिन फूलों से गोलाकार व्रत बनाई जाती है 10वे दिन तक उसके ऊपर गोलाकार में फूलों के व्रत रखे जाते हैं ऐसी मान्यता है कि ओणम के तीसरे दिन महाबली पाताल लोक लौट जाते हैं जितनी भी कलाकृतियां बनाई जाती है वह महाबली के चले जाने के बाद हटाई जाती हैं यह  केरल वासियों के साथ पुरानी परंपरा के रूप में जुड़ा हुआ है ओणम- वास्तविक रूप में फसल काटने का त्यौहार है

ओणम के त्योहार पर पौराणिक कथा

जब परशुराम जी ने सारी पृथ्वी को क्षत्रियों से जीतकर ब्राह्मणों को दान कर दी थी तब उनके पास रहने के लिए कोई भी स्थान नहीं बचा था तब उन्होंने सादरी पर्वत की गुफा में बैठकर जल देवता वरुण की तपस्या की वरुण देवता ने तपस्या से खुश होकर परशुराम जी को दर्शन दिए और कहा कि तुम अपना परसा समुंदर में फैको  जहां तक तुम्हारा परसा समुंदर में जाकर गिरेगा वहीं तक समुद्र का जल पृथ्वी बन जाएगी

वह सब पृथ्वी तुम्हारी होगी और उसका नाम  परशु क्षेत्र होगा परशुराम जी ने वैसा ही किया और जो भूमि उनको समुंदर में मिली उसी को आज “ केरल या मलयालम कहते हैं” परशुराम जी ने समुंदर से भूमि प्राप्त करके वहां पर एक विष्णु भगवान का मंदिर बनवाया था वही मंदिर अब भी  त्रिकुंण के नाम से प्रसिद्ध है जिस दिन परशुराम जी ने मंदिर में मूर्ति स्थापित की थी उस दिन श्रावण शुक्ल की त्रयोदशी थी इसलिए इस दिन ओणम का त्यौहार मनाया जाता है | ओणम का त्यौहार क्यों मनाते हैं इसका महत्व |

राजा महाबली कौन थे

केरल में महाबली नाम का एक  असुर राजा था  जिसके स्वागत में यह त्यौहार मनाते हैं राजा बलि की अच्छाइयों के कारण जनता उनका गुणगान करती थी उनके यश को बढ़ता देख देवताओं को चिंता होने लगी इसके बाद सभी देवताओं ने भगवान विष्णु को जाकर अपनी बात कहीं और भगवान विष्णु वामन रूप धारण कर कर राजा महाबली के पास आए उन्होंने दान में तीन पग भूमि मांगी एक पग में पृथ्वी दूसरे में आसमान और जब तीसरे पग में देने के लिए राजा महाबली के पास कुछ नहीं बचा तो उन्होंने अपना शीश झुका दिया तब वामन भगवान ने उनके पैर रखकर राजा महाबली को पाताल लोक पहुंचा दिया इसके बाद राजा बलि ने साल में एक बार अपनी प्रजा से मिलने की आज्ञा मांगी उस समय से यह माना जाता है कि पूनम के दिन राजा बलि अपनी प्रजा से मिलने आते हैं | ओणम का त्यौहार क्यों मनाते हैं इसका महत्व |

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