पंडित श्रीराम शर्मा की जीवनी

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पंडित श्रीराम शर्मा की जीवनी 

भारत के युगपुरुष पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य ने अपना जीवन समाज के सांस्कृतिक नैतिक और चारित्रिक उत्थान के समर्पित किया है साधना के प्रति उनका झुकाव बचपन में दिखाई देने लगा जब भी अपने सहपाठियों को छोटे बच्चों को अमराईयो में बिठाकर स्कूली शिक्षा के साथ-साथ सूसंस्कारित अपनाने वाले आत्मविद्या का शिक्षण दिया करते थे यह वही युग ऋषि है जिन्होंने अखिल भारतीय गायत्री परिवार की स्थापना की है

उन्होंने अपने कार्यों से आधुनिक और प्राचीन भारत का समन्वय किया है स्वतंत्रता सेनानी के साथ ही एक अध्यात्मिक विज्ञान, दार्शनिक विज्ञान, लेखक, समाज सुधारक भी थे पंडित श्रीराम शर्मा नर सेवा को ही नारायण सेवा मानते थे वे जात पात में विश्वास नहीं रखते थे वे कुष्ठ रोगियों की सेवा करते थे पंडित जी ने बेरोजगार युवाओं और नारियों को अपने पैरों पर खड़ा करने के लिए अपने गांव में एक बुनता घर स्थापित किया था 

पंडित श्रीराम शर्मा का जन्म

पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य का जन्म 20 सितंबर 1911 में ग्राम आवल खेड़ा जिला आगरा उत्तर प्रदेश में हुआ था पंडित जी का बचपन गांव में ही बीता बचपन से उनका झुकाव अध्यात्म और साधना की और अधिक था एक बार में हिमालय की ओर भाग गए थे बाद में पकड़े जाने पर उन्होंने कहा कि हिमालय ही उनका घर है और वह वहीं रहना चाहते हैं पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य ने अखिल विश्व गायत्री परिवार की स्थापना की थी

पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य को श्री राम मत, गुरुदेव, वेदमूर्ति, युग ऋषि ,गुरु जी आदि नामों से इनके भगत पुकारते हैं पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य अखिल विश्व गायत्री परिवार के संस्थापक और संरक्षक भी रहे पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य के पिताजी का नाम पंडित “रूप किशोर” शर्मा था पंडित रूप किशोर शर्मा दूरदराज के राजघरानों के राजपुरोहित विद्वान भगवत कथाकार थे 15 वर्ष की आयु में बसंत पंचमी के मेला में 1926 में उनके घर की पूजा स्थली में जो उनकी नियमित उपासना का तब से आधार थी

जब से महामना पंडित मदन मोहन मालवीय जी ने उन्हें काशी में गायत्री मंत्र की दीक्षा दी थी हिमालय से कठोर तप कर लौटने के बाद श्रीराम शर्मा आचार्य देश की आजादी के संघर्ष में जुट गए थे युग निर्माण मिशन, गायत्री परिवार, प्रजा अभियान गुरुदेव के अकल्पनीय कार्य हैं पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य की पत्नी का नाम “भगवती देवी शर्मा” था 1927 से 1933 तक का समय उनका एक सक्रिय स्वयंसेवक स्वतंत्रता सेनानी के रूप में बीता था 

पंडित श्रीराम शर्मा का राजनीति कार्य

श्री गणेश शंकर विद्यार्थी के प्रभाव से राजनीति में प्रवेश करने के बाद शर्मा जी धीरे-धीरे महात्मा गांधी के अत्यंत निकट हो गए थे इससे पूर्व के आठ 10 वर्षों तक में प्रतिवर्ष 2 मार्च सेवाग्राम में गांधी जी के पास रहा करते थे बापू का उन पर अटूट विश्वास था आचार्य कृपलानी, श्री पुरुषोत्तम दास टंडन, पंडित गोविंद बल्लभ पंत, डॉ कैलाश नाथ काटजू आदि नेताओं के साथ उनके घनिष्ठ संबंध थे सन 1942 में ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ के दौरान शर्मा जी उत्तर प्रदेश में मध्य प्रदेश के प्रभारी रहे शर्मा जी ने सन 1942 में आगरा षड्यंत्र केस में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी

इस केस का नाम था king Emperor इस मुकदमे में 14 उपयुक्त थे शर्मा जी के बड़े पुत्र रमेश कुमार शर्मा उनकी बेटी कमला शर्मा के साथ उनके बड़े भाई पंडित बाला प्रसाद शर्मा पकड़े गए थे अंत में 1945 में सब लोग जेल से रिहा हुए गिरफ्तारी और जेल प्रवास के दौरान शर्मा जी के तीन पुत्रों की मृत्यु हो गई और पुलिस की मारपीट के कारण उनका एक कान भी फट गया था जेल से छूटने के बाद वे सीधे गांधीजी के पास गए थे महात्मा गांधी की हत्या के बाद लेखन कार्य में ही अधिकृत रहे पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य जी को कई बार छह- छह माह की जेल हुई थी

आसनसोल जेल में वे पंडित जवाहरलाल नेहरु की माता श्रीमती स्वरूप रानी नेहरू, श्री रफी अहमद, किदवई महामना, मदन मोहन मालवीय जी, देवदास, गांधी जैसी हस्तियों के साथ रहे पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य जेल से एक मूल मंत्र लेकर आए जो कि मालवीय जी ने दिया था कि जन जन की साझेदारी बढ़ाने के लिए हर व्यक्ति के अंशदान से मुट्ठी फंड से रचनात्मक प्रवृत्तियां चलाना है सन 1945 में जेल से छूटने के बाद आचार्य जी लेखन कार्य में जुट गए थे जीवन के अंतिम आठ- 10 वर्षों में उन्होंने नेत्रहीन अवस्था में 5 पुस्तके बोलकर लिखी 

श्रीराम शर्मा जी की रचनाएं

श्रीराम शर्मा आचार्य जी ने लगभग 3200 ग्रंथों की रचना की थी जिसमें चारों वेदों का सरल भाषा उपनिषद सहित अनेक सदग्रंथ शामिल है सन 1991 में श्रीराम शर्मा आचार्य जी ने हरिद्वार में शांतिकुंज की स्थापना की जहां से गायत्री परिवार की शुरुआत हुई थी1935 के बाद उनके जीवन का नया दौर शुरू हुआ जब गुरु सत्ता की प्रेरणा से वे श्री अरविंद सिंह जी से मिलने पांडिचेरी, गुरुदेव रविंद्र नाथ टैगोर से मिलने शांतिनिकेतन तथा बापूजी से मिलने साबरमती आश्रम अहमदाबाद गए

इसके बाद आगरा में ‘सैनिक समाचार पत्र’ के कार्यवाहक संपादक के रूप में श्री कृष्ण दत्त पालीवाल जी ने उन्हें अपना सहायक बनाया इसके बाद इन्होंने ‘अखंड ज्योति’ नामक पत्रिका का पहला अंक 1938 में प्रकाशित किया था इन्होंने जनवरी 1940 में परिजनों के नाम पाती के साथ अपने हाथ से बने कागज पर पैर से चलने वाली मशीन से अखंड ज्योति पत्रिका शुभारंभ किया 

श्रीराम शर्मा आचार्य की मृत्यु

श्रीराम शर्मा आचार्य जी 2 जून 1990 को शरीर त्यागकर परमात्मा में विलीन हो गए थे तब से शांतिकुंज में गंगा दशहरा के साथ गायत्री जयंती और आचार्य पंडित श्रीराम शर्मा का महानिर्वाण दिवस साथ साथ मनाया जाता है शुक्रवार को इस अवसर पर शांतिकुंज में तीन दिवसीय कार्यक्रम की शुरुआत हुई 

 श्रीराम शर्मा जी के सुविचार

1.अवसर तो सभी को जिंदगी में मिलते ,हैं किंतु उनका सही वक्त पर सही तरीके से इस्तेमाल कुछ ही कर पाते हैं 

2.इस संसार में प्यार करने लायक दो वस्तुएं है- एक दुख और दूसरा श्रम दुख के बिना हृदय निर्मल नहीं होता और श्रम के बिना मनुष्यत्व का विकास नहीं होता 

3.जीवन में दो ही व्यक्ति असफल होते हैं एक वो जो सोचते हैं पर करते नहीं, दूसरे जो करते हैं पर सोचते नहीं 

4.विचारों के अंदर बहुत बड़ी शक्ति होती है विचार आदमी को गिरा सकते हैं और विचार ही आदमी को उठा सकते हैं, आदमी कुछ नहीं है

5.लक्ष्य के अनुरूप भाव उदय होता है तथा उसी स्तर का प्रभाव क्रिया में पैदा होता है 

6.लोभी मनुष्य की कामना कभी पूर्ण नहीं होती

7. मानव के कार्य ही उसके विचारों की सर्वश्रेष्ठ व्याख्या हैं 

8.अवस्थित मस्तिक वाला कोई भी व्यक्ति संसार में सफल नहीं हो सकता 

9.जीवन में सफलता पाने के लिए आत्मविश्वास उतना ही जरूरी है, जितना जीने के लिए भोजन कोई भी सफलता बिना आत्मविश्वास के मिलना असंभव है 

10.मैं इस संसार का महत्वपूर्ण व्यक्ति हूं 

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