प्लासी के युद्ध का इतिहास, सिराजुदौला और अंग्रेजों के बीच युद्ध , प्लासी में युद्ध
प्लासी के युद्ध का इतिहास
प्लासी का युद्ध सिराजुदौला और ईस्ट इंडिया कंपनी के संघर्ष का परिणाम था इस युद्ध के अत्यंत महत्वपूर्ण और स्थाई परिणाम निकले थे 1757 में हुआ प्लासी का युद्ध ऐसा था जिसने भारत में अंग्रेजों की सत्ता की नींव रख दी थी बंगाल की तत्कालीन स्थिति और अंग्रेज स्वार्थ ने ईस्ट इंडिया कंपनी को बंगाल की राजनीति में हस्तक्षेप करने का अवसर प्रदान किया अलीवर्दी खान जो पहले बिहार का निजाम था उसने औरंगजेब की मृत्यु के बाद राजनीति का बहुत ही लाभ उठाया और अपनी सैन्य शक्ति बहुत अधिक बढ़ा ली थी
उसने बंगाल के नवाब सरफराज को युद्ध में हरा कर मार डाला और स्वयं वहां का नवाब बन गया इसके बाद 9 अप्रैल को अली वर्दी खान की मृत्यु हो गई उसकी अपनी कोई संतान नहीं थी उसके उत्तराधिकार के लिए लोगों में आपसी षड्यंत्र होने लगे लेकिन अली वर्दी खान ने पहले ही अपनी छोटी बेटी के पुत्र सिराजुद्दौला को उत्तराधिकारी मनोनीत कर दिया था इसके बाद सिराजुदौला बंगाल का नवाब बन गया नवाब बनने के बाद सिराजुदौला को कई विरोधियों का सामना करना पड़ा था उसकी सबसे बड़ी विरोधी और प्रतिद्वंदी उसकी परिवार की मौसी थी उसकी मौसी का नाम ‘घसीटे बेगम’ था
घसीटी बेगम का पुत्र शौकत जो स्वयं पूर्णिया का शासक था उसने अपने दीवान अमीरचंद और जगत सेठ के साथ सिराजुदौला को पराजित करने का सपना देखा किंतु सिराजुदौला पहले से ही सावधान हो चुका था उसने सबसे पहले अपनी मौसी घसिटी बेगम को कैद किया और उसका सारा धन जप्त कर लिया इसके बाद शौकत गंज भयभीत हो गया और उसने सिराजुदौला के प्रति वफादार रहने का वचन दिया लेकिन सिराजुदौला ने बाद में उसे युद्ध में हरा कर मार डाला था इधर ईस्ट इंडिया कंपनी तब तक अपनी स्थिति मजबूत कर चुकी थी दक्षिण में फ्रांसीसीयो को हराकर अंग्रेजों के हौसले बुलंद थे लेकिन वह बंगाल में भी अपना प्रभुत्व जमाना चाहते थे लेकिन अली वर्दी खान ने पहले ही सिराजुदौला को सलाह दे दी थी कि अंग्रेजों का बंगाल में किसी भी तरह नहीं घुसने देना है इसलिए घुसने भी अंग्रेजों को लेकर आशंकित था | प्लासी के युद्ध का इतिहास |
सिराजुदौला और अंग्रेजों के बीच युद्ध
सिराजुदौला ने अंग्रेजों को फोर्ट विलियम किले को नष्ट करने का आदेश दिया जिसे उन्होंने ठुकरा दिया था इसके बाद गुस्साए नवाब ने मई 1756 में आक्रमण कर दिया 20 जून 1756 में कासिम बाजार पर नवाब का अधिकार हो गया इसके बाद सिराजुदौला ने फोर्ट विलियम पर भी अपना अधिकार कर लिया था नवाब का अधिकार होने से पहले ही अंग्रेजी गवर्नर ब्रेक ने अपनी पत्नी और बच्चों के साथ भाग कर फुलटाना द्वीप पर शरण ले ली इसके बाद कोलकाता में बची अंग्रेजों की सेना को आत्मसमर्पण करना पड़ा अनेक अंग्रेजों को बंदी बनाकर मानक चंद के जिम्मे कोलकाता का भार सौंपकर नवाब अपनी राजधानी मुर्शिदाबाद लौट आया
उसी समय काली कोठरी की एक भयंकर घटना घटी जिसने नवाब और अंग्रेजों को आपस में और अधिक कटु बना दिया था कहां जाता है कि 146 अंग्रेजों और उनके बच्चों और पत्नियों को फोर्ट विलियम की एक कोठरी में बंद कर दिया था जिसमें दम घुटने के कारण कई लोगों की मौत हो गई थी जब इस घटना की खबर मद्रास पहुंची तो अंग्रेज बहुत अधिक गुस्सा हो गए और उन्होंने सिराजुद्दौला से बदला लेने की ठान ली थी इसके बाद कुछ अंग्रेजी अधिकारी अपनी थल सेना को लेकर मद्रास की ओर बढ़े और सिराजुदौला के कुछ अधिकारियों को रिश्वत देकर अपने पक्ष में कर लिया था इसके बाद मानक चंद ने बिना किसी प्रतिरोध के कोलकाता अंग्रेजों को सौंप दिया था
बाद में अंग्रेजों ने हुगली पर भी अपना अधिकार जमा लिया था ऐसी स्थिति में मजबूर होकर नवाब को अंग्रेजों से समझौता करना पड़ा था 9 फरवरी 1757 ईस्वी को एक अंग्रेजी गवर्नर ने नवाब के साथ संधि की थी जिसके परिणाम स्वरूप मुगल सम्राट को दी गई सारी सुविधाएं वापस ली जानी चाहिए इसके बाद नवाब को बाध्य होकर अपनी सारी संपत्ति अंग्रेजों को लौटानी पड़ी ईस्ट इंडिया कंपनी को नवाब की तरफ से हर्जाने की रकम भी मिली थी उस समय नवाब अपने अंदर ही अंदर बहुत ही अपमान महसूस कर रहा था इसके बाद अंग्रेज इस संधि से भी खुश नहीं हुए वह नवाब को गद्दी से हटाकर किसी वफादार नवाब को गद्दी पर बैठा ना चाहते थे जो उनके कहे अनुसार काम करें इसके बाद कलायम ने नवाब के खिलाफ षड्यंत्र रचना शुरू कर दिया था
अंग्रेज गवर्नर ने मिर्जा फिर से गुप्त संधि की और उसे नवाब बनाने का लालच दिया इसके बदले मिर्जा आफिर ने अंग्रेजों को कासिम बाजार, ढाका और कोलकाता की किलेबंदी और एक करोड रुपए देने का आश्वासन दे दिया इस षड्यंत्र में जगत सेठ, रायदुर्लभ और अमिचंद भी शामिल थे इसके बाद कलायम ने नवाब पर अलीनगर की संधि भंग करने का आरोप लगा दिया था उस समय नवाब की स्थिति अत्यंत दयनीय थी दरबारी षड्यंत्र और अहमद अली के आक्रमण के कारण वह बहुत अधिक भयभीत थे सिराजुदौला ने मिर्जा आशिर को अपने पक्ष में करने की बहुत कोशिश की परंतु वह असफल रहे नवाब की स्थिति को जानकर कलाई में अपनी सेना के साथ प्रस्थान किया नवाब भी अपनी राजधानी छोड़ कर आगे बढ़ा | प्लासी के युद्ध का इतिहास |
प्लासी में युद्ध
23 जून 1757 ईस्वी को प्लासी के मैदान में दोनों सेनाओं की मुठभेड़ हुई यह युद्ध नाम मात्र का युद्ध था नवाब कि सेना के एक बड़े भाग ने इस युद्ध में हिस्सा नहीं लिया था आंतरिक कमजोरी के बावजूद भी नवाब की सेना जिसका नेतृत्व मोहनलाल कर रहे थे अंग्रेजों की सेना का डटकर सामना करने लगे परंतु मिर्जा आफिर के विश्वासघात के कारण सिराजुद्दौला को हारना पड़ा सिराजुदौला अपनी जान बचाकर भागे तब मिर्जा के पुत्र ने उन्हें मार डाला
इस युद्ध में अंग्रेजो के 300 सैनिक और नवाब की 18000 सेना थी विश्वासघात और षड्यंत्रों के कारण नवाब को इस युद्ध में हारना पड़ा था प्लासी के युद्ध के परिणाम अत्यंत व्यापक निकले इस युद्ध का प्रभाव कंपनी, बंगाल और भारतीय इतिहास पर पड़ा इसके बाद कलाईम ने मिर्जा को बंगाल का नवाब घोषित कर दिया था मिर्जा ने कंपनी और कलाईम को बेशुमार धन दीया संधि के अनुसार अंग्रेजों को भी बहुत सुविधाएं दी गई थी बंगाल की गद्दी पर एक ऐसा नवाजा गया था जो अंग्रेजों के हाथ की कठपुतली था
प्लासी के युद्ध ने बंगाल की राजनीति पर अंग्रेजों का नियंत्रण कायम कर दिया इस युद्ध के बाद अंग्रेज व्यापारी से राजशक्ति के स्रोत बन गए थे इसका नैतिक परिणाम भारतीयों पर बहुत अधिक पड़ा एक व्यापारिक कंपनी ने भारत आकर यहां से सबसे अमीर प्रांत के सूबेदार को अपमानित करके गद्दी से हटा दिया और मुगल सम्राट तमाशा देखते रह गए थे आर्थिक दृष्टि से भी अंग्रेजों ने बंगाल का शोषण करना शुरू कर दिया था इसी युद्ध से प्रेरणा लेकर कलाईमने आगे बंगाल में अपनी सत्ता स्थापित कर ली थी बंगाल से धन के आधार पर दक्षिण में अंग्रेजों ने फ्रांसीसीयो पर विजय प्राप्त की थी और भारत में इकलौते प्रतिद्वंदी को नष्ट कर दिया था | प्लासी के युद्ध का इतिहास |