राजा मानसिंह का जीवन परिचय, राजा मानसिंह का जन्म, राजा मानसिंह को नवरत्न की उपाधि, हल्दीघाटी का युद्ध, राजा मानसिंह की मृत्यु
राजा मानसिंह का जन्म
राजा मानसिंह का जन्म 1540 ईस्वी में हुआ था उनके पिता जी का नाम राजा “भगवानदास” था जो आमेर के राजा थे मुगल वंश जब अकबर के नेतृत्व में अपना साम्राज्य बढ़ा रहा था उस वक्त राजस्थान के कई रियासतों में आपस में भी जंग चल रही जिसका फायदा उठाकर अकबर अपना साम्राज्य बढ़ा रहा था अकबर पहले हर साम्राज्य के पास दोस्ती की संधि भेजते यदि वह मान जाते थे तो उन्हें तय करके एक-एक राज्य दे दिया जाता था
यदि कोई राजा साम्राज्य देने से इंकार कर देता था तो अकबर युद्ध के द्वारा उस साम्राज्य को जीत लेता था और उसकी देखभाल के लिए अपने आदमियों को छोड़ देता था भगवान दास ने गुजरात युद्ध के समय अकबर का साथ दिया था भगवान दास ने कई युद्धों में अकबर की मदद की थी अकबर ने हिंदू राजाओं को अपनी तरफ करने के लिए भगवान दास की बहन “जोधाबाई” से विवाह कर लिया था उस समय मान सिंह बहुत छोटे थे परंतु बचपन से ही साहसी थे वह तलवार बाजी में काफी निपुण थे | राजा मानसिंह का जीवन परिचय |
राजा मानसिंह को नवरत्न की उपाधि
जब एक बार जोधाबाई वापस आमेर आई तब भगवान दास ने मानसिंह को जोधाबाई के साथ अकबर के पास भेजा और तभी से मानसिंह अकबर के दरबार में आ गया मानसिंह धीरे-धीरे अपनी समझदारी और योग्यता के कारण अकबर के नवरत्नों में से एक बन गए अकबर के शासन काल में सबसे पहले मान सिंह के पिता भगवान दास को पंजाब की सूबेदारी और कुंवर मानसिंह को सिंध के पास सीमावर्ती प्रांत का शासन दिया गया जब मान सिंह 30 वर्ष के हुए तब अकबर के सौतेले भाई मिर्जा मोहम्मद हकीम की मृत्यु हो गई तब मान सिंह उसी समय सिंध से काबूल पहुंच गए और वहां के विद्रोह दबाया और लूटपाट को शांत किया
अकबर के दरबार में जब मानसिंह वापस लौटे तो उन्हें काबुल का शासक बनाया गया इसके बाद उन्हें बिहार में कछुआओं की जागीर सौंपी गई शासक बनने के बाद मानसिंह ने पूरणमल पर आक्रमण कर दिया और इसके साथ ही कई स्थानों पर अपना कब्जा जमा लिया इसके बाद अकबर ने खुश होकर इन्हें पांच हजारी मनसब दिया और साथ ही राजा के पद से भी नवाजा था इसके बाद मान सिंह ने बिहार की ओर अपना रुख किया और पटना की सत्ता को अपने अधीन कर लिया राजा मानसिंह का विजय अभियान यहीं नहीं रुका इन्होंने झारखंड के रास्ते उड़ीसा पर भी अपना कब्जा जमा लिया
इस तरह राजा मानसिंह ने कई छोटे-छोटे राज्यों को हराकर मुगल साम्राज्य में मिला लिया अकबर ने राजा मानसिंह के इस विजय अभियान से खुश होकर इन्हें 7 हजार मनसब अदा किए यह इनकी वफादारी और साहस का इनाम था मान सिंह के नेतृत्व में आमेर ने भी काफी तरक्की की थी मुगल दरबार में सम्मानित होकर मानसिंह ने अपने राज्य का विस्तार किया अनेक राज्यों पर आक्रमण करके जो अपरिमित संपत्ति लूटी थी
उसके द्वारा आमेर राज्य को शक्तिशाली बना दिया आमिर जो एक मामूली राज्य समझा जाता था मानसिंह के समय वही शक्तिशाली और विशाल राज्य बना उस समय महाराणा प्रताप एक महान शासक थे और वह मुगलों से नफरत करते थे महाराणा प्रताप भी मान सिंह के कुछ करीबी थे जिस तरह अकबर मानसिंह के फूफा जी थे उसी तरह महाराणा प्रताप के साथ भी उनका संबंध था परंतु महाराणा प्रताप मानसिंह को आक्रमणकारी मानते थे | राजा मानसिंह का जीवन परिचय |
हल्दीघाटी का युद्ध
भारत का सबसे बड़ा हल्दीघाटी का युद्ध मान सिंह के नेतृत्व में महाराणा प्रताप के खिलाफ हुआ था जब राजा मानसिंह महाराष्ट्र से विजय हासिल कर वापस लौट रहे थे तब उन्होंने महाराणा प्रताप से मिलने का निश्चय किया दरबार में पहुंचने पर मान सिंह का स्वागत है उनके पद के अनुसार किया गया जब शाम को भोजन का समय हुआ तो मानसिंह को भोजन के लिए बुलाया गया जब मान सिंह वहां पहुंचे तो महाराणा प्रताप के बेटे अमीर वहां मौजूद थे मानसिंह ने उनके पिता महाराणा प्रताप के बारे में पूछा कि वह खाना खाने क्यों नहीं आए तब उनके बेटे ने कहा कि मेरे पिताजी तुर्कों के साथ खाना खाने में अपमान समझते हैं
जब मानसिंह ने यह बात सुनी तो उन्हें अपमान महसूस हुआ इसके बाद अकबर ने महाराणा प्रताप के खिलाफ़ युद्ध की घोषणा कर दी मुगल सेना मेवाड़ की ओर उमड़ पड़ी उसमें मुगल, राजपूत और पठान के साथ अकबर का जबरदस्त तोपखाना भी था इस विशाल मुगल सेना का मुकाबला महाराणा प्रताप ने अपने मुट्ठी भर सैनिकों के साथ किया इसके बाद हल्दीघाटी की पीली भूमि रक्त से रंजीत हो गई सन 1576 में गोगुंदा के पास हल्दीघाटी में महाराणा प्रताप का सामना राजा मानसिंह से हुआ चेतक की पीठ पर सवार महाराणा प्रताप ने अकबर के सेनापति मानसिंह पर हमला बोल दिया
मानसिंह हाथी के पीठ पर चिपक कर बैठ गए परंतु महावत मारा गया इसके बाद महाराणा प्रताप जख्मी हो गए और वहां से युद्ध छोड़ कर चले गए मानसिंह के कारण महाराणा प्रताप 4 साल तक जंगल में छिपे रहे इसके बाद मानसिंह ने महाराणा प्रताप के महलों में अपना कब्जा जमा लिया और उनके एक प्रसिद्ध हाथी रामप्रसाद को लूटकर आमेर भेज दिया लेकिन मान सिंह ने चित्तौड़गढ़ के नगर को लूटने की आज्ञा नहीं दी थी इससे अकबर बहुत ही नाराज हुए और उन्होंने मानसिंह को दरबार में आने पर पाबंदी लगा दी माना जाता है कि बीरबल की मृत्यु का बदला राजा मानसिंह ने ही लिया था
जब तक बादशाह अकबर जिंदा थे तब तक मानसिंह को कोई भी कठिनाई नहीं थी लेकिन जैसे ही अकबर की तबीयत खराब हुई वैसे ही मान सिंह की मुश्किलें बढ़ने लगी अकबर का बेटा जहांगीर मानसिंह को पसंद नहीं करता था जब अकबर बीमार हुए तब जहांगीर ने उनके नौ रत्नों में से एक रतन “अबुल फजल” की हत्या करवा दी थी ऐसी स्थिति में अकबर ने “खुसरो” को अपना उत्तराधिकारी बनाना चाहा था अकबर के इस फैसले का समर्थन राजा मानसिंह ने किया था जिसके कारण जहांगीर को उनसे नफरत हो गई जब अकबर की मृत्यु हुई उस समय जहांगीर मुगल का बादशाह बना और उसने बगावत के डर से राजा मानसिंह को बंगाल की और भेज दिया मैं जानता था कि राजा मानसिंह के साथ बड़ी संख्या में मजबूत राजपूत सेना का साथ है
जिन दिनों में अकबर भयानक रूप से बीमार होकर अपने मरने की आशंका कर रहा था मानसिंह ने खुसरो को मुगल शासन पर बिठाने के लिए षडयंत्र का जाल बिछाया था उनकी यह चेष्टा दरबार में सब को ज्ञात हो गई और उन्हें बंगाल का शासक बना कर भेज दिया गया मानसिंह के चले जाने के बाद खुसरो को कैद करके कारागार में रखा गया मानसिंह चतुर और दूरदर्शी था वह छिपे तौर पर खुसरो का समर्थन करता रहा मानसिंह के अधिकार में 20000 राजपूतों की सेना थी इसलिए बादशाह ने प्रकट रूप में उसके साथ सुल्तान नहीं की थी| राजा मानसिंह का जीवन परिचय |
राजा मानसिंह की मृत्यु
राजा मानसिंह ने कई मंदिरों का निर्माण करवाया जिनमें वृंदावन का एक मंदिर भी शामिल है राजा मानसिंह ने आमेर के सौंदर्य करण में अपना बहुत ही योगदान दिया राजा मानसिंह की एलिचपुर में स्वभाविक रुप से 1614 ईसवी में मृत्यु हुई थी राजा मानसिंह ने अपने जीवन में जितने भी युद्ध लड़े थे वह कभी नहीं हारे थे
| राजा मानसिंह का जीवन परिचय |