राजा रवि वर्मा का जीवन परिचय, राजा रवि वर्मा का जन्म, राजा रवि वर्मा का विवाह, राजा रवि वर्मा के प्रमुख चित्र , राजा रवि वर्मा की मृत्यु
राजा रवि वर्मा का जीवन परिचय
राजा रवि वर्मा एक प्रसिद्ध भारतीय चित्रकार थे जिन्हें भारतीय कला के इतिहास में के इतिहास में महानतम चित्रकारों में गिना जाता है ब्रिटिश काल के प्रारंभ में लगभग 50 से अधिक चित्रकार भारतवर्ष आए थे इनमें से अनेक चित्रकार अपने व्यवसाय में बहुत दक्ष थे इन चित्रकारों ने तेल रंगों से बड़े आकार के राजा और रईसों के व्यक्ति चित्र बनाएं
इस प्रकार के चित्रों की मांग देश के धनी वर्ग, नवाबों, राजाओं, जागीरदारों तथा जमीदारों में इतनी बड़ी कि भारतवर्ष की रूढ़िवादी परंपरागत चित्रकला समाप्त हो गई और भारतीय चित्रकला का भविष्य अनिश्चित सा दिखाई पड़ने लगा पाश्चात्य कला की धारा में अनेक भारतीय चित्रकारों को प्रभावित किया और उन्होंने पाश्चात्य चित्रकला में दक्षता प्राप्त की इन्हीं चित्रकारों में राजा रवि वर्मा का नाम प्रमुख है उन्होंने भारतीय साहित्य, संस्कृति और पौराणिक कथाओं और उनके पात्रों का जीवन चित्रण किया उन्होंने यूरोपीय कला पद्धति के अनुरूप भारत की चित्रकला की धारा को नया जीवन प्रदान किया
राजा रवि वर्मा के चित्रों के विषय भारतीय आख्यान और कथानको और धर्म पर आधारित थे उनके चित्र शैली पाश्चात्य थी उनके चित्रों को तत्कालीन समाज में ऊंची दृष्टि से देखा जाता था उच्च वर्गीय परिवार और राजाओं ने इनके चित्रों से अपने घरों और महलों की शोभा बढ़ाई भारतीय चित्रकला के क्षितज पर राजा रवि वर्मा का उदय ऐसे समय में हुआ था जब भारत पर ब्रिटिश साम्राज्य की छाया मंडरा रही थी ब्रिटिश शासकों की उपेक्षा अन्य ऐतिहासिक वह राजनीतिक कारणों से राजघरानों में पल्लवित तथा विकसित लघु चित्रकला दम तोड़ रही थी
राजा रवि वर्मा का जन्म
राजा रवि वर्मा का जन्म 29 अप्रैल 1848 ईस्वी को केरल के एक गांव किलिमनूर में हुआ था इनकी माता जी का नाम “उमा अंबाबाई” था वह संगीत में दक्ष थी उनके पिताजी का नाम नीलकांत भट्ट था वह वेदों के ज्ञाता व संस्कृत के पंडित थे उस समय शादी के बाद पति को पत्नी के घर में रहने की प्रथा थी अतः रवि वर्मा के पिता उनकी मां के भाई राजा राज वर्मा के यहां रहते थे इन्हें बाल्यकाल से ही चित्र बनाने का शौक था राजा रवि वर्मा के त्रावणकोर राजघराने से घनिष्ठ संबंध थे
प्रारंभ रवि वर्मा ने तंजौर शैली के चित्रों का अध्ययन किया बाद में उनके मामा उन्हें त्रावणकोर के महाराजा थिरुनाल के दरबार में ले गए जहां रवि वर्मा कि उनका संरक्षक मिला महाराजा थिरुनाल रवि वर्मा से बहुत प्रभावित थे और वे चाहते थे कि रवि वर्मा को कला की उच्च शिक्षा मिले उन्होंने अपने राज चित्रकार अलागिरी नायडू से उन्हें कला की शिक्षा देने को कहा इनकी शिक्षा दीक्षा त्रिवेंद्रम के राज्य कलाकार तंजौर शैली के सुप्रसिद्ध चित्रकार “अलागिरी नायडू” के निर्देशन में हुई थी
राजा रवि वर्मा की ग्रह शक्ति अत्यंत प्रबल थी यही कारण था कि ब्रिटिश चित्रकार ‘थियोडोर जेंसन को पेंटिंग’ बनाते देखकर उन्होंने तेल रंगों की तकनीक को सहज ही आत्मसात कर लिया इस प्रकार तेल रंगों का आधुनिक चित्रकला में प्रयोग करने का श्रेय सर्वप्रथम राजा रवि वर्मा को जाता है त्रवंकोर महाराजा का सरंक्षण प्राप्त कर अथक परिश्रम द्वारा एक चित्र निर्मित किया इस चित्र में नायर महिला बालों को चमेली के हार से गुथती हुई चित्रित है
इस चित्र से राजा रवि वर्मा की धूम मच गई 25 वर्ष की उम्र में इस चित्र पर तत्कालीन गवर्नर का स्वर्ण पदक प्राप्त हुआ उनके इस कृति ने वियना की अंतरराष्ट्रीय कला प्रदर्शनी में योग्यता प्रमाण पत्र भी प्राप्त किया फिर तो जैसे पुरस्कारों का एक लंबा सिलसिला शुरू हो गया सन 1878 में ‘विएना’ के एक प्रदर्शनी में उनके चित्रों का प्रदर्शन किया गया जहां उन्हें एक पुरस्कार भी मिला जिसके बाद उनका नाम और चर्चित हो गया
राजा रवि वर्मा को प्राप्त सम्मान
राजा रवि वर्मा को सन 1880 ईस्वी में पुणे प्रदर्शनी का ‘गायकवाड स्वर्ण पदक’ तथा 1904 ईसवी में ब्रिटिश सरकार का ‘केसर ए हिंद’ मेडल उल्लेखनीय है इस सम्मान के बाद वे रवि वर्मा से “राजा रवि वर्मा” कहलाए राजा रवि वर्मा के चित्रों को सन 1893 में शिकागो में संपन्न ‘वर्ल्डस कोलंबियंस एक्सपोजिशन’ में भी भेजा गया जहां उन्हें तीन स्वर्ण पदक प्राप्त हुए उन्होंने चित्रकारी के लिए विषयों की तलाश में समूचे देश का भ्रमण किया वे हिंदू देवियों के चित्रों को अक्सर सुंदर दक्षिण भारतीय महिलाओं के रूप में दर्शाते थे
उस समय राजा, महाराजाओं तथा उच्च पदस्थ ब्रिटिश शासकों ने राजा रवि वर्मा द्वारा बनाए गए दरबारी दृश्यों, नारी सौंदर्य उबारने वाले चित्र एवं विविध भारतीय पौराणिक आख्यान ऊपर आधारित कला चित्रों की बहुत ही प्रशंसा की और उन्हें अपने यहां काम करने पर निमंत्रण दिया उस समय उच्च घरानों में राजा रवि वर्मा के चित्रों की मांग इतनी अधिक थी कि वह उसे अपने जीवन काल में पूरा नहीं कर सकते थे इसलिए सर माधवराव की सलाह से उन्होंने 1894 ईसवी में मुंबई में अपना लिथोग्राफिक प्रेस खोलकर जर्मन तकनीशियनो की देखरेख में अनेक चित्रों की प्रतिलिपिया छपवाई
राजा रवि वर्मा के चित्रों की रंग योजना सदैव आंखों को भाने वाली होती थी वे ऐसे रंगों का बहुत अच्छी तरह से प्रयोग करते थे जो दर्शकों के मन में गंभीर भाव जगाए राजा रवि वर्मा मानव आकृतियों के रूप- स्वरूप को तो सजाते ही थे साथ ही उनके वस्त्रों की सलवटो तक का पूरा पूरा ख्याल रखते थे वे रंगों की छाया व प्रकाश से चेहरे तथा भाव मुद्राओं को अंकित करते थे राजा रवि वर्मा की कला एक रोमांटिक कला रही किंतु उनका दृश्यात्मक कथन इतना प्रबल रहा कि आखयानो के प्रसंग के साथ-साथ तत्कालीन सामाजिक जीवन की विसंगतियों को भी जीवित अभिव्यक्ति मिली
राजा रवि वर्मा का विवाह
राजा रवि वर्मा का विवाह मल्ली बेकारा के राजघराने की पूरातत्थी थिरुनल भागीरथी थंबूरत्ती के साथ हुआ था उनके दो पुत्र और तीन पुत्रियां थी उनका सबसे बड़ा पुत्र केरल वर्मा सन 1912 में कहीं लापता हो गया और उसके बाद कभी नहीं मिला उनका दूसरा पुत्र रामा वर्मा एक कलाकार था और उसने जेजे स्कूल ऑफ आर्ट्स मुंबई में पढ़ाई की थी उसका विवाह दीवान पीजीएल उनके बहन गौरी कुंज अंबा से हुआ था
राजा रवि वर्मा के प्रमुख चित्र
राजा रवि वर्मा को बचपन से चित्र का बहुत ही शौक था वह अपने घरों की दीवारों पर कोयले से चित्र बनाते थे रवि वर्मा के प्रमुख चित्र हैं श्री कृष्ण बलराम सागर का गर्व दमन ,सीता हरण, भीष्म प्रतिज्ञा, दरिद्रता, नल दमयंती, मंदोदरी,इंद्रजीत विजय, द्रोपदी, सरस्वती श्रृंगार, मेनका महेंद्र, हंस और महिला, गंगा- शांतनु, दुर्योधन द्रोपती, मां और शिशु ,चांदनी में नारी, कुलीन महिलाएं,रावण और जटायु ,मंदिर में भिक्षा दान, उदयपुर का किला, शंकुतला, मैसूर दरबार, त्रावणकोर नरेश, नंद और देवकी, महिला और दर्पण तथा भारतीय ऐतिहासिक पौराणिक घटनाओं पर अनेक सुंदर चित्र राजा रवि वर्मा ने बनाए थे
इसके साथ ही तत्कालीन राजा महाराजाओं के अनेक व्यक्ति चित्र भी उन्होंने बनाए थे राजा रवि वर्मा के चित्रों को आज हम बड़ौदा के लक्ष्मी विलास महल, फतेह सिंह संग्रहालय, मैसूर के जगमोहन महल, मद्रास संग्रहालय, आधुनिक राष्ट्रीय कला संग्रहालय उदयपुर, उदयपुर के राज महल, मैसूर के राज महल, सालारजंग संग्रहालय हैदराबाद, चित्रशाला त्रिवेंद्रम तथा केरल के राजा महाराजाओं के अनेक निजी भवनों तथा हवेलियों में देख सकते हैं राजा रवि वर्मा द्वारा बनाया गया कालिदास के महाकाव्य शंकुतलम का चित्र जिसमें शंकुतला को राजा दुष्यंत को पत्र लिखते हुए दर्शाया गया है बहुत ही प्रसिद्ध है
उनके द्वारा बनाई गई एक ऐतिहासिक कलाकृति जो भारत में ब्रिटिश राज के दौरान ब्रितानी राज के एक उच्च अधिकारी और महाराजा की मुलाकात को चित्रित करती है वह 6 करोड़ में बिकी थी इस पेंटिंग में त्रावणकोर के महाराज और उनके भाई को मद्रास के गवर्नर जनरल रिचर्ड टेंपल ग्रेनविले को स्वागत करते हुए दिखाया गया है ग्रेनविले 1880 में यात्रा पर त्रावणकोर गए थे जो अब केरल राज्य में है
राजा रवि वर्मा की मृत्यु
2 अक्टूबर 1986 को कला कर्म करते हुए त्रिवेंद्रम के निकट आर्टीट्रंगल में राजा रवि वर्मा का निधन हो गया भारतीय चित्रकला के इतिहास में पितामह कहलाने वाले राजा रवि वर्मा के योगदान को हम कभी नहीं भुला पाएंगे उनकी चित्र संपदा आने की वह तक नई पीढ़ी का मार्गदर्शन करती रहेगी राजा रवि वर्मा भारत में पहला लिथोग्राफिक प्रेस खोलने वाले पहले कलाकार थे
भारतीय देवी-देवताओं को घर घर पहुंचाने वाला महान चित्रकार राजा रवि वर्मा थे राजा रवि वर्मा भारत के चित्रकारों में अपना अद्वितीय स्थान इसलिए रखते हैं क्योंकि उनकी कला की तकनीकी प्राचीन भारतीय और यूरोपीय कला शैली के बेजोड़ समन्वय की विशिष्टता लिए हुए हैं भारतीय सामान्य जनमानस में वे इसलिए लोकप्रिय हुए क्योंकि उन्होंने हिंदू देवी देवताओं के अत्यंत सुंदर व स्वभाविक मुद्रा में ऐसे चित्र बनाए जो अत्यंत सजीव तथा श्रद्धा से युक्त जान पड़ते हैं
उनके चित्र कला में तेल चित्रों का सुंदर रूप मिलता है विश्व की सबसे महंगी साड़ी राजा रवि वर्मा के चित्रों की नकल से सुसज्जित है बेशकीमती 12 रत्नों व धातुओं से जड़ी ₹40लाख की साड़ी को दुनिया की सबसे महंगी साड़ी के तौर पर लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में शामिल किया गया है राजा रवि वर्मा के जीवन पर आधारित फिल्म भी बनी हुई है आज तक तेल रंगों में उनकी जैसी सजीव प्रति कृतियां बनाने वाला कलाकार दूसरा नहीं हुआ | राजा रवि वर्मा का जीवन परिचय |