समुद्रगुप्त मौर्य का इतिहास

समुद्रगुप्त मौर्य का इतिहास, समुंद्र गुप्त मौर्य का जन्म, समुद्रगुप्त मौर्य का राज्याभिषेक, समुद्रगुप्त का विवाह, समुद्र गुप्त मौर्य की मृत्यु

समुद्रगुप्त मौर्य का इतिहास 

समुद्रगुप्त ने राजा बनने के बाद जो महान कार्य किए उनको अभिलेखों और शिलालेखों में लिखवाया उस के दरबार में कवि “हरिषेण” रहता था जिसने समुद्रगुप्त की विजय कथाओं व अभियानों को अभिलेखों में लिखा उसके अभिलेख उसी स्थान पर लिखे गए जिस पर सम्राट अशोक के लेख हैं प्रयाग का अभिलेख उसके इतिहास का एक महत्वपूर्ण स्त्रोत है यह अभिलेख वर्तमान समय में इलाहाबाद उत्तर प्रदेश में है इस अभिलेख में उसकी दिग्विजय, व्यक्तित्व और चरित्र का प्रमाण मिलता है

अभिलेख में समुद्रगुप्त को लाख गायों का दानी, विद्वान, विद्या का संरक्षक, धर्म का प्रचार, संगीतकार इत्यादि नामों से संबोधित किया गया है यह अभिलेख ब्राह्मी लिपि में लिखा गया है समुद्रगुप्त अखिल भारतीय राज्य से बहुत ही प्रभावित हुआ था उसने भारत को राजनीति एकता में बांधा था श्रीलंका के मेधवर्धन ने गया में एक बौद्ध मंदिर बनवाने के लिए उनसे अनुमति मांगी थी इस कार्य को करवाने के लिए उसने कई सारे उपहार भी भेजे थे

बाद में समुद्रगुप्त ने इस कार्य को अनुमति दे दी जिससे पता चलता है कि वह विदेशी राजाओं के साथ भी मित्रता पूर्वक व्यवहार रखते थे समुद्रगुप्त ने अपने सैन्य अभियानों के जरिए आने-जाने की सुविधा को सरल बनाया जिसके फलस्वरूप माल भारत के किसी भी कोने में आसानी से पहुंच सकता था इसी वजह से लोगों का जीवन स्तर काफी ऊंचा था और उनके पास अच्छे खाने के अलावा अच्छे कपड़े हीरे जवाहरात जैसे विलासिता के सभी साधन थे समुद्रगुप्त ने अपने राज्य का विस्तार उत्तर भारत से लेकर दक्षिण भारत तक किया था | समुद्रगुप्त मौर्य का इतिहास |

समुंद्र गुप्त मौर्य का जन्म 

सम्राट चंद्रगुप्त का जन्म 335 ईसवी में प्राचीन भारत के शहर इंद्रप्रस्थ में हुआ था उनके पिता का नाम चंद्रगुप्त प्रथम तथा माता का नाम कुमार देवी था समुद्रगुप्त का पुराना नाम “कचा” था परंतु अपने राज्य को समुंदर तक फैलाने के बाद उसने अपना नाम समुद्र रखा जब समुद्रगुप्त के पिता बूढ़े हो गए तो उन्होंने गुप्त राज्य को अपने पुत्र समुद्रगुप्त को सौंप दिया और उसे सम्राट घोषित कर दिया था चंद्रगुप्त मौर्य के शासन काल को स्वर्ण युग कहा जाता है समुद्रगुप्त ने भारत को एकता के सूत्र में बांधने का महत्वपूर्ण कार्य किया था समुद्रगुप्त जनता की भलाई के कार्य करते थे

समुद्र गुप्त मौर्य का शासन काल 350 से 380 ईसवी तक रहा था समुद्र गुप्त मौर्य बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि के थे समुद्र गुप्त गुप्त  राजवंश के चौथे राजा और चंद्रगुप्त प्रथम के उत्तराधिकारी थे एवं “पाटलिपुत्र” उनके साम्राज्य की राजधानी थी वैश्विक इतिहास में सबसे बड़े और सफल सेनानायक एवं सम्राट माने जाते हैं वह गुप्त राजवंश के चौथे शासक थे और उनका शासनकाल भारत के लिए स्वर्ण युग की शुरुआत कहीं जाती है समुंदर गुप्त मौर्य के अंदर राजा के सभी गुण विद्यमान थे यही कारण है कि उनके पिता चंद्रगुप्त मौर्य ने उन्हें अपना उत्तराधिकारी चुना था उन्होंने अपने जीवन काल में ही समुंदर गुप्त को राजा बनाने का मन बना लिया था

चंद्रगुप्त का यह फैसला कई लोगों को पसंद नहीं आया इस फैसले का समुंद्र गुप्त के भाइयों ने जमकर विरोध किया था इसके बाद उन सब में गृह युद्ध छिड़ गया और समुद्रगुप्त ने सभी को इस युद्ध में मात दे दी और अपने आप को पूरी तरह से गुप्त वंश में झोंक दिया था समुद्रगुप्त ने उत्तर भारत की जीत से शुरुआत की थी और धीरे-धीरे वह पूरे भारत में फैली थी समुद्रगुप्त कभी भी धर्म का विरोध नहीं करते थे उनके अनुसार जो व्यक्ति जिस धर्म को मानता है वह मानता रहे परंतु अपना साम्राज्य उनके साम्राज्य में शामिल कर दे सभी राजा और प्रजा समुद्रगुप्त के राज्य में खुश थे | समुद्रगुप्त मौर्य का इतिहास |

समुद्रगुप्त का विवाह 

समुद्र गुप्त मौर्य ने अपने जीवन काल में कई शादियां करवाई थी परंतु पुत्र की प्राप्ति उन्हें किसी भी रानी से नहीं हुई थी इसके बाद उन्हें पुत्र की प्राप्ति अपनी पटरानी “अग्र देवी” से हुई थी जिससे विक्रमादित्य का जन्म हुआ जिन्होंने गुप्त वंश को आगे बढ़ाया था | समुद्रगुप्त मौर्य का इतिहास |

समुद्रगुप्त मौर्य का राज्याभिषेक 

335 ईसवी में सम्राट समुद्रगुप्त ने मगध की गद्दी संभाली थी जिस समय समुद्रगुप्त गद्दी पर बैठे उस समय गुप्त राज्य बहुत ही छोटा था उस समय सारा देश अनेक छोटे-छोटे भागों में बंटा हुआ था उस समय समुद्रगुप्त ने निर्णय किया कि वह अनेक राज्यों को जीतकर अपने राज्य का विस्तार करेगा इसके बाद वह भारत भूमि को एक करने का दृढ़ निश्चय लेकर निकल पड़े भारत क्षेत्र में उनके द्वारा चलाए गए ज्यादातर अभियान सफल रहे थे 

उन्होंने पहले आर्यवर्त युद्ध में 3 राजाओं को हराकर अपनी विजय का तिरंगा लहराया था इसके बाद उन्होंने दक्षिण के 12 राज्यों को हराकर वहां पर अपना अधिकार जमा लिया इसके बाद समुद्र गुप्त मौर्य ने कई विदेशी शक्तियों को भी अपनी शक्ति का लोहा  मानने पर मजबूर कर दिया था उनके शासनकाल में कोई भी ऐसा विरोधी राजा नहीं था जो कि उनके सामने खड़े रह सके उन्होंने युद्ध में सभी राजाओं को हराकर उनसे उनका क्षेत्र छीन लिया था समुद्र गुप्त मौर्य बहुत ही दयालु थे उन्होंने युद्ध में हारे हुए राजाओं को नहीं मारा था वह चाहते तो उन्हें मार सकते थे

जब तक समुंदर गुप्त मौर्य ने संपूर्ण भारत पर विजय प्राप्त नहीं की थी तब तक उन्होंने 1 दिन भी आराम नहीं किया था समुद्र गुप्त मौर्य अपने राज्य को चारों दिशाओं में दूर तक फैलाने में सफल रहे थे यही कारण है कि उन्हें भारत का नेपोलियन कहा जाता है प्रयाग प्रशस्ति ग्रंथ में समुंदर गुप्त मौर्य की गौरव गाथा का वर्णन किया गया है इस ग्रंथ को समुद्रगुप्त के कवि “हरीश सेन” ने तैयार किया था समुद्र गुप्त मौर्य एक योद्धा ही नहीं बल्कि एक संगीतकार भी थे वह वीणा बजाने में बहुत ही कुशल थे उनके द्वारा बनवाए गए सिक्कों में संगीतज्ञ की झलक देखने को मिलती है उनमें वह वीणा लिए हुए नजर आते हैं

वह कवि के रूप में भी विख्यात रहे थे उन्हें अपने समय में कवियों का राजा भी बोला जाता था वे जब दरबार में जब सभा लगाते थे तो वहां पर अपनी कविताओं का पाठ करते थे भारत में मुद्रा चलन का आरंभ समुद्र गुप्त मौर्य ने ही किया था उन्होंने स्वर्ण मुद्राएं और उच्च कोटि की मुद्राओं का चलन करवाया था उन्होंने अपने शासनकाल में सात प्रकार के सिक्कों का चलन शुरू किया था | समुद्रगुप्त मौर्य का इतिहास |

समुद्र गुप्त मौर्य की मृत्यु

समुद्र गुप्त मौर्य की 380 ईसवी में मृत्यु हो गई थी उनके व्यक्तित्व का हर पहलू आज भी लोगों को प्रेरित करता है चाहे वे उनकी शौर्य गाथाएं हो या फिर संगीत हो समुद्र गुप्त मौर्य एक योद्धा थे उन्होंने 100युद्धों को जीतकर एक अखंड भारत का निर्माण किया था दक्षिण के राजा समुद्रगुप्त के खौफ से उन्हें हर वर्ष उपहार भेजा करते थे सुमित मौर्य ने भारत को जीत कर कई “अश्वमेघ यज्ञों” का आयोजन करवाया था | समुद्रगुप्त मौर्य का इतिहास |

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