क्षितिद्रनाथ मजूमदार का जीवन परिचय, क्षितिद्रनाथ का जन्म, क्षितिद्रनाथ की चित्र शैली, क्षितिद्रनाथ के प्रमुख चित्र, क्षितिद्रनाथ की मृत्यु
क्षितिद्रनाथ मजूमदार का जीवन परिचय
भारतीय आधुनिक चित्रकला के इतिहास में क्षितिद्रनाथ मजूमदार ही ऐसे कलाकार हैं जिन्होंने वैष्णव संप्रदाय से संबंधित चित्र बनाने में अपना पूरा जीवन लगा दिया जिनके लिए चित्रकला भक्ति की साधना थी इनके चित्र को देखकर उनके अंदर बैठे ‘संत कलाकार’ को देखा जा सकता है जो अपने हृदय में समाए हुए भावों को रेखा रंग के माध्यम से चित्र फलक पर उतारता था जिन्हें देखकर दर्शक भाव विभोर हो जाता था इसलिए इन्हें संत चित्रकार या भाव के सम्राट के नाम से भी पुकारा जाता है| क्षितिद्रनाथ मजूमदार का जीवन परिचय |
क्षितिद्रनाथ का जन्म
क्षितिद्रनाथ का जन्म 31 जुलाई 1891 ईसवी में पश्चिम बंगाल के ‘मुर्शिदाबाद’ जिले में “निमतीता” नामक स्थान में हुआ था इनके पिता जी का नाम “केदारनाथ” था अल्पायु में ही इनकी माता का देहांत हो गया था इसके बाद इनके पिताजी ने इनका पालन पोषण किया था इनके पिता जी मुर्शिदाबाद में रजिस्टार थे इनकी कला के प्रति रुचि बचपन से ही थी
क्षितिद्रनाथ कि कला शिक्षा कोलकाता के राज्य कला विद्यालय में तथा शांतिनिकेतन में “अवनींद्र नाथ टैगोर” के सानिध्य में हुई थी यह क्षितिद्रनाथ के गुरु थे इन्हीं से क्षितिद्रनाथ ने कला की शिक्षा ग्रहण की थी क्षितिद्रनाथ ‘इंडियन सोसाइटी ऑफ ओरिएंटल आर्ट’ में अध्यापक बने और फिर बाद में प्राचार्य भी हुए थे
इलाहाबाद विश्वविद्यालय के तत्कालीन कुलपति अमरनाथ ने क्षितिद्रनाथ मजूमदार को इलाहाबाद विश्वविद्यालय में आमंत्रित कर 1 सितंबर 1942 में चित्रकला विभाग की स्थापना करवाई और क्षितिद्रनाथ को प्रथम अध्यक्ष नियुक्त किया था क्षितिद्रनाथ इस पद पर 62 वर्ष की आयु तक बने रहे थे इसके बाद 1963 में बंगाल कांग्रेस कमेटी द्वारा इन्हें अशोक स्तंभ से सम्मानित किया गया था | क्षितिद्रनाथ मजूमदार का जीवन परिचय |
क्षितिद्रनाथ की चित्र शैली
क्षितिद्रनाथ बंगाल स्कूल से निकलकर प्रयाग में अपनी कला यात्रा को न सिर्फ आगे बढ़ाया बल्कि उत्तर प्रदेश की कला को एक नई पहचान दिलाई क्षितिद्रनाथ मजूमदार ने बंगाल शैली की वाश तकनीक के साथ ही जल रंग की टेंपरा पद्धति में भी चित्रण कार्य करने वाले पहले चित्रकार थे हल्का पीला, हरा, सफेद, गेरुआ इनके प्रिय रंग थे क्षितिद्रनाथ मजूमदार बंगाल के महान संत चैतन्य महाप्रभु के आध्यात्मिक जीवन से प्रभावित थे
उनके अधिकांश चित्र वेषण धर्म से संबंधित है इनके चित्रों में मानव आकृतियां भारतीय सौंदर्य की प्रतीक है इनके चित्र में प्रभावपूर्ण रेखांकन है और चित्रों की पृष्ठभूमि में वृक्षों का प्रयोग किया है चित्रों के विषय पौराणिक आख्यान, रामायण, महाभारत, कृष्ण लीला तथा चैतन्य महाप्रभु के जीवन प्रसंग की श्रंखला आदि का चित्र प्रमुख था क्षितिद्रनाथ के “श्री चैतन्य का गृह त्याग” पर मुग्ध होकर अवनींद्र नाथ ठाकुर ने इन्हें ₹200 का पुरस्कार दिया था
शांत सरल एवं शर्मीले स्वभाव के क्षितिद्रनाथ धार्मिक अंख्यानो के ताने-बाने में उनकी कल्पना को पंख लग गए जो कलात्मक अभिव्यक्ति में साकार होने लगे सूफियाना ढंग के भक्ति भाव लिए उनके राधाकृष्णन के चित्र शायद ही कहीं देखने को मिलते हैं मजूमदार की कलाकृतियां विभिन्न संग्रहालय में सुरक्षित है क्षितिद्रनाथ के सर्वाधिक चित्र इलाहाबाद संग्रहालय में है इसके अतिरिक्त इंडियन म्यूजियम कोलकाता, भारत भवन वाराणसी आदि में है | क्षितिद्रनाथ मजूमदार का जीवन परिचय |
क्षितिद्रनाथ के प्रमुख चित्र
ध्रुव की तपस्या, राधा का अभिसार, चैतन्य का जीवन, प्रसंग पर श्रंखला, रूप गोस्वामी तथा मीरा ,विष्णु प्रिया, सरस्वती, लक्ष्मी, मनसा देवी, राधा कृष्ण, कृष्ण प्रेम में विभोर,पालीत मृग ,चरण श्रृंगार, भक्ति वैराग्य, गीत गोविंद आदि
क्षितिद्रनाथ की मृत्यु
क्षितिद्रनाथ कोलकाता में रहकर भी वह पूरी तरह से शहरी नहीं बन पाए और ग्रामीण संस्कृति हमेशा उनकी कल्पना पर छाई रही अपने गुरु अबनींद्रनाथ ठाकुर के प्रति अनुराग होने पर भी उन्होंने उनकी शैली की अनुकृति नहीं की बल्कि अपनी मौलिक शैली की खोज की इनके चित्र बंगाल के लोग जीवन से प्रेरित हैं
यह अपने चित्रों में संगीतमय वातावरण का सृजन करते थे इन्होंने कला पर बहुत ही बल दिया था क्षितिद्रनाथ का रेखांकन अद्वितीय है क्षितिद्रनाथ मजूमदार का निधन 9 फरवरी 1975 को इलाहाबाद में हुआ था क्षितिद्रनाथ के चित्र लंदन में बहुत ही लोकप्रिय हुए थे अवनींद्र नाथ ने इन्हें “चैतन्य सिद्ध” की उपाधि दी थी
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