सावित्रीबाई फुले का जीवन परिचय

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सावित्रीबाई फुले का जीवन परिचय 

सावित्रीबाई भारत की पहली महिला अध्यापिका थी वह एक लेखिका संपादक निदेशक और समाज सुधारक थी उन्होंने समाज कल्याण के बहुत से कार्य किए थे सावित्रीबाई फुले ने भू्रण हत्या, सती प्रथा जैसे अपराधिक कार्यों को रोकने के लिए कई संस्थाओं का निर्माण करवाया था सावित्रीबाई ने समाज में क्रांतिकारी बदलाव किए थे | सावित्रीबाई फुले का जीवन परिचय |

सावित्रीबाई फुले का जन्म 

सावित्रीबाई फुले का जन्म 3 जनवरी 1831 को महाराष्ट्र के सतारा में नाय गांव में हुआ था इनके पिता जी का नाम “खंडोजी” और माता जी का नाम ‘लक्ष्मी बाई’ था सावित्रीबाई फुले जी का बचपन आम लड़कियों की तरह हंसते खेलते बीता वह बचपन में ही निर्भीक, साहसी और होनहार थी यदि कोई बड़ा लड़का किसी छोटे लड़की को परेशान करता तो वह उस लड़के को पीट देती थी उनके इस साहस को देखकर उनके पिताजी बहुत खुश होते थे

जब सावित्रीबाई जी 7 साल की हुई तब उनके माता पिता को उनके विवाह की चिंता होने लगी क्योंकि पहले के समय में लड़की की जल्दी शादी हो जाती थी 9 वर्ष की आयु में ज्योतिबा फुले जी के साथ 1840 में उनकी शादी हो जाती है शादी से पहले एक दूसरे को उस समय नहीं देखते थे उस समय यह एक रिवाज था ज्योतिबा फुले एक समाज सुधारक ,लेखक, दार्शनिक थे | सावित्रीबाई फुले का जीवन परिचय |

सावित्रीबाई की शिक्षा 

ज्योतिबा फुले जी पढ़ाई में होशियार थे उन्होंने अपनी पत्नी सावित्रीबाई जी को पढ़ाने का निर्णय लिया पहले तो सावित्रीबाई फुले जी उनके इस फैसले से हंसने लगी कि इस उम्र में वे पढ़ाई करेगी पर वह धीरे-धीरे पति की बातों में रूचि लेने लगी इसके बाद ज्योतिबा फुले ने खुद ने एक शिक्षक के रूप में सावित्रीबाई को शिक्षा दी और उन्हें घर पर ही पढ़ाना शुरू किया उन दिनों शुद्र, अछूत नारी की स्थिति बहुत भयंकर और पीड़ा से भरी थी सारी कठिनाइयों के अलावा अछूत शूद्र नारी को और भी अधिक अपमान अविष्कार झेलने पड़ते थे शूद्र समाज को मानव की तरह जीने का अधिकार भी नहीं था

उस समय नारी की स्थिति कितनी दयनीय रही होगी कल्पना भी नहीं की जा सकती शुद्र अछूत नारी के लिए महामानव फुले दंपत्ति ने कन्या स्कूल खोलें ज्योतिबा फुले जी ने आगे चलकर 1848 में पुणे नगर की भिड़े हवेली में पहली पाठशाला शुरु की थी सदियों से नारी शिक्षा से वंचित रखने वाली रूढ़िवादी और क्रूर समाज व्यवस्था पर प्रहार किया था सावित्रीबाई ने एक अध्यापिका बनकर समाज सेवा, नारी उत्थान के कार्य आरंभ किए और साथ ही प्रथम भारतीय महिला अध्यापिका बनने का ऐतिहासिक गौरव प्राप्त किया लेकिन कुछ जातिवादी गंदी मानसिकता वाले लोगों ने इसका विरोध किया

उनको धर्म डुबाने वाली कहकर और अश्लील गालियां देकर अपमानित किया वह उनके ऊपर पत्थर और गोबर फेंक कर उन्हें समाज सेवा के इस कार्य से दूर करना चाहा जातिवादी मानसिकता के लोगों ने उन्हें दूसरी जाति के लोगों को अच्छा काम न करने दिया जाए इसका कारण यही है वे मुकाबला करने से हमेशा डरते हैं वह अपने प्रतिद्वंदी पैदा ही नहीं होने देना चाहते इसलिए वे दूसरे से ही षड्यंत्र के द्वारा विशुद्ध अछूत की प्रतिभा को कुचलने का काम बहुत क्रूरता से करते आए हैं उनका सावित्रीबाई फुले पर स्कूल जाते समय गोबर पत्थर फेंकना उनका उद्देश्य था कि वह शिक्षण कार्य छोड़ कर भाग जाए लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी वे अपने साथ 2 साड़ियां लेकर जाती गोबर कीचड़ से साड़ी गंदी हो जाती थी इसलिए वह दो साड़ियां थैले में रख कर चलती थी | सावित्रीबाई फुले का जीवन परिचय |

सावित्रीबाई के सामाजिक कार्य 

सावित्रीबाई  ने विधवाओं की शोचनीय दशा को देखकर पुनर्विवाह की प्रथा को प्रारंभ किया उन्होंने 1854 में विधवाओं के लिए एक आश्रम की स्थापना की थी इसके साथ साथ ही उन्होंने नवजात शिशुओं के लिए भी आश्रम खोला था ताकि शिशु कन्या हत्या को रोका जा सके उनको एक बार धमकी भी दी गई कि वह शिक्षक का काम छोड़ दे लेकिन फिर भी उन्होंने अपनी जान खतरे में डालकर नारी और बच्चों को शिक्षित करने के कार्य पर मजबूती के साथ डटी रही सावित्रीबाई ने सती प्रथा को रोकने और भू्रण हत्या को रोकने जैसे अपराधों के लिए बहुत से प्रयास किए 

सावित्रीबाई ने अपने पति ज्योतिबा फुले के साथ मिलकर एक काशी नाम की गर्भवती महिला को आत्महत्या करने से रोकाऔर उसे अपने घर पर रखकर उसकी देखभाल भी की थी और उस औरत की समय पर डिलीवरी करवाई बाद में उन्होंने उसके पुत्र यशवंत को दत्तक पुत्र के रूप में गोद ले लिया और उसे बहुत पढ़ाया लिखाया जो बाद में एक प्रसिद्ध डॉक्टर बना सावित्रीबाई ने दो पुस्तकों की रचना की “काव्य फुले” ,”बावनकशी सुबोध रत्नाकर” सावित्रीबाई ने अपने जीवन में कभी भी पीछे मुड़कर नहीं देखा उन्होंने पुणे में 18 महिला विद्यालय खोले थे

1854 में सावित्रीबाई फुले और ज्योतिबा फुले ने एक अनाथ आश्रम खोला यह भारत में किसी व्यक्ति द्वारा खोला गया पहला अनाथ आश्रम था उन्होंने शिशु हत्या को रोकने के लिए बाल हत्या प्रतिबंधक गृह भी स्थापित किया 24 सितंबर 1873 को अपने अनुयायियों के साथ मिलकर सावित्रीबाई फुले ने “सत्यशोधक समाज संस्था” का निर्माण किया वे खुद इसके अध्यक्ष थे सावित्रीबाई फुले महिला विभाग की प्रमुख थी उनका मुख्य उद्देश्य उच्च जातियों के शोषण से नीचे वर्ग के लोगों को मुक्त कराना था ज्योतिबा के कार्यों में सावित्रीबाई ने बराबर का योगदान दिया था ज्योतिबा फुले ने जीवन भर निम्न जाति,महिलाओं और दलितों के उद्धार के लिए कार्य किया उनके इस कार्य में उनकी धर्मपत्नी सावित्रीबाई ने अपना पूरा योगदान दिया था कई बार तो ज्योतिबा फुले अपनी धर्मपत्नी सावित्रीबाई से मार्गदर्शन करते थे नारी उत्थान और उन्हें शिक्षित करने में सावित्रीबाई जी और ज्योतिबा फुले जी का बहुत सहयोग रहा इन्हीं की बदौलत आज नारी शिक्षित हो पाई है | सावित्रीबाई फुले का जीवन परिचय |

सावित्रीबाई फुले की मृत्यु

 28 नवंबर 18 सितंबर को ज्योतिबा फुले का देहांत हो गया इसके बाद सावित्रीबाई फुले ने उनके अनुयायियों के साथ मिलकर सत्यशोधक समाज को दूर-दूर तक पहुंचाने और अपने पति के अधूरे कार्यों को पूरा करने और समाज सेवा का कार्य जारी रखा 1897 में पुणे में प्लेग की बीमारी फैली और सावित्रीबाई खुद भी इसकी चपेट में आ गई थी

10 मार्च1897 उनकी मृत्यु हो गई सावित्रीबाई को पूरे देश की महानायिका माना जाता है हर बिरादरी और धर्म के लिए उन्होंने काम किया उनका पूरा जीवन समाज में वंचित महिलाओं और दलितों के उद्धार के लिए संघर्ष में भी था उस जमाने में यह सब कार्य करने इतने सरल नहीं थे जितने आज लग सकते हैं अनेक कठिनाइयों और समाज के प्रबल विरोध के बावजूद महिलाओं का जीवन स्तर सुधारने तथा रूढ़ि मुक्त करने में सावित्रीबाई फुले का महत्वपूर्ण योगदान रहा है उसके लिए हमेशा उनका ऋणि रहेगा 

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