शहीद उधम सिंह का इतिहास और जीवनी हिंदी में
उधम सिंह का जन्म
शहीद उधम सिंह का जन्म 26 दिसंबर 1899 में पंजाब के संगरूर जिले के सुनाम में हुआ था उस समय लोग इन्हें शेर सिंह के नाम से जानते थे यह एक महान क्रांतिकारी थे उनके पिता सरदार तहल सिंह जम्मू उपली गांव के रेलवे क्रॉसिंग वॉचमैन का काम किया करते थे उनकी माता नारायण कौर थी वह एक ग्रहणी थी जो अपने दोनों बच्चों उधम सिंह और मुक्ता सिंह की देखभाल भी किया करती थी परंतु दुर्भाग्यवश दोनों भाइयों के सिर पर माता पिता का साया शीघ्र ही हट गया था
सन 1901 में इनके पिताजी की मृत्यु हो गई थी इनके पिताजी की मृत्यु के 6 वर्ष बाद इनकी माता जी की भी मृत्यु हो गई थी इसके बाद दोनों भाइयों को अमृतसर के खालसा अनाथालय में शरण लेनी पड़ी थी इसके बाद उधम सिंह को अपने भाई का साथ भी ज्यादा समय तक नहीं मिला था सन 1917 में इनके भाई की भी मृत्यु हो गई थी इसके बाद उधम सिंह बिल्कुल अकेले रह गए थे | शहीद उधम सिंह का इतिहास और जीवनी
उधम सिंह का पूरा नाम
शहीद उधम सिंह का पूरा नाम शहीद-ए-आजम सरदार था
उधम सिंह द्वारा ग्रहण की गई शिक्षा
उधम सिंह ने अपनी प्रारंभिक पढ़ाई खालसा अनाथालय से ही पूरी की उधम सिंह ने 1918 में अपनी मैट्रिक की पढ़ाई पूरी कर ली थी इसके बाद सन 1919 में उन्होंने अनाथालय को छोड़ दिया था उस समय पंजाब में तीव्र राजनीतिक उथल-पुथल चल रही थी उधम सिंह इस राजनीतिक उथल-पुथल को बहुत ही अच्छी तरीके से समझ रहे थे
उधम सिंह भगत सिंह के विचारों से प्रेरित थे उधम सिंह भगत सिंह के द्वारा किए गए अपने देश के प्रति क्रांतिकारी कार्यों से बहुत ही प्रभावित हुए थे जब 1935 में उधम सिंह को कश्मीर में भगत सिंह की तस्वीर के साथ पकड़ा गया था उस समय उन्हें भगत सिंह का सहयोगी मान लिया था उधम सिंह को भगत सिंह का शिष्य मान लिया था उधम सिंह को देश भक्ति गीत बहुत ही पसंद थे वह राम प्रसाद बिस्मिल द्वारा लिखे गए गीतों के बहुत ही शौकीन थे
जलियांवाला बाग हत्याकांड
13 अप्रैल 1919 को भारत के इतिहास में एक भयंकर तबाही और काले दिन के रूप में जाना जाता है इस दिन पंजाब का प्रमुख त्योहार वैशाखी था आसपास के गांव के लोग उत्सव और मौज मस्ती मनाने के लिए अमृतसर में इकट्ठा हुए थे ब्रिटिश अधिकारियों को यह पता चल चुका था कि यह लोग कोई बड़ा विद्रोह कर सकते हैं जब जलियांवाला बाग हत्याकांड हुआ इसमें अंग्रेजों ने बहुत से निर्दोष लोगों को मौत के घाट उतार दिया था
इसमें बूढ़े बच्चे महिलाएं और नौजवान शामिल थे इस दुखद घटना को उधम सिंह ने अपनी आंखों से देख लिया था वह उस समय वहां पर मौजूद थे वह उस समय लोगों को पानी पिला रहे थे इस घटना ने उधम सिंह के मन में अंग्रेजों के लिए नफरत के बीज बो दिए और उस दिन से वह केवल इसका प्रतिशोध लेने के तरीकों के बारे में सोचने लगे उसी समय शरण ले ली थी कि वह अंग्रेजों से बदला लेकर रहेंगे
उधम सिंह की क्रांतिकारी गतिविधियां
अपने द्वारा दिए गए संकल्पों को पूरा करने के मकसद से उन्होंने अपने नाम को अलग-अलग जगह बदल कर दक्षिण अफ्रीका, जिंबाब्वे, ब्राजील, अमेरिका बड़े देशों में अपनी यात्रा की थी उधम सिंह जी भगत सिंह जी की राहों पर चलने लगे 1913 में गदर पार्टी का निर्माण किया गया इस पार्टी का निर्माण भारत में क्रांति भड़काने के लिए किया गया था सन 1924 में उधम सिंह ने इस पार्टी से जुड़ने का निश्चय लिया और वह इस पार्टी से जुड़ गए थे भगत सिंह ने उधम सिंह को 1927 में अपने देश वापस आने का आदेश दिया | शहीद उधम सिंह का इतिहास और जीवनी
उधम सिंह की गिरफ्तारी
जब उधम सिंह भारत वापस आ रहे थे तो वह अपने साथ 25 सहयोगी बारूद और पिस्तौल लेकर आ रहे थे उस समय उन्हें बिना लाइसेंस हथियार के पकड़ लिया गया था उन्होंने 4 साल जेल में ही बिताएं यह सोच कर कि वह बाहर निकल कर जनरल डायर को उसके की अपराध की सजा देकर रहेगा सन 1931 में जेल से बाहर आने के बाद वह अपना बदला पूरा करने के लिए कश्मीर गए थे इसके बाद कश्मीर से भागकर व जर्मनी पहुंच गए
1934 में वह लंदन जा पहुंचे वहां पर उन्होंने अपने कार्य को अंजाम देने के लिए सही समय का इंतजार करते रहे भारत का वीर पुरुष जलिया वाले बाग के 21 साल बाद 13 मार्च 1940 को रॉयल सेंट्रल सेशिएशन सोसायटी की लंदन के कांस्टेबल में बैठक थी जहां माइकल और डायर भी शामिल थे उन्हें दंड देने के लिए तैयार उधम सिंह भी वहां बैठा था उन्होंने एक मोटी किताब में अपनी रिवाल्वर को छुपा रखा था इस किताब के पन्नों को उन्होंने इस तरह से काटा था जिसमें रिवाल्वर को अच्छी तरह से छिपाया जा सके जैसे ही वह बैठक का समय नजदीक आया वैसे उधम सिंह ने आगे बढ़कर जनरल डायर को मारने के लिए 2 गोलियां चला दी
जिससे जनरल डायर की उसी समय पर ही मृत्यु हो गई कहा जाता है कि उन्होंने इसलिए इस दिन का इंतजार किया था कि पूरी दुनिया जनरल डायर द्वारा किए गए अपराध की सजा पूरी दुनिया देख सकें उन्होंने अपने काम को अंजाम देने के बाद उन्होंने गिरफ्तारी के डर से भागने का बिल्कुल भी प्रयास नहीं किया वह कर अपनी जगह पर बिल्कुल शांत खड़े रहे उन्हें इस बात का गर्व था कि उन्होंने अपने देशवासियों के लिए वह कर दिखाया जो वह चाहते थे ऐसे बहुत से क्रांतिकारी और स्वतंत्रता सेनानी अपने देश के लिए अपना सब कुछ समर्पण करना चाहते थे
उधम सिंह की मृत्यु
उधम सिंह को 4 जून 1940 को जनरल डायर की मृत्यु का दोषी घोषित कर दिया था इसके बाद 31 जुलाई 1940 को लंदन के पैंटोन जेल में उन्हें फांसी की सजा दी गई इसके बाद उनके मृत शरीर के अवशेष उनकी पुण्यतिथि 31 जुलाई 1974 को भारत को सौंप दिया उधम सिंह की अस्थियों को सम्मान पूर्वक भारत लाया गया और प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी, शंकर दयाल शर्मा, ज्ञानी जैल सिंह द्वारा प्राप्त किए गए इसके बाद उनके गांव में उनकी समाधि बनवाई गई थी उन्होंने 40 वर्ष की आयु में अपने आप को देशवासियों के लिए समर्पण कर दिया था | शहीद उधम सिंह का इतिहास और जीवनी