शेरशाह सूरी का इतिहास और जीवन परिचय
शेरशाह सूरी का जन्म
शेरशाह सूरी का जन्म 1486 में पंजाब के होशियारपुर शहर में बजवाड़ा नामक स्थान पर हुआ था शेरशाह सूरी के बचपन का नाम फ़रीद खाँ था वह बिहार की एक छोटी सी जागीर के अफगान सरदार का पुत्र था इनके पिता जी का नाम हसन था एक बार खरीद के मालिक पर एक शेर ने हमला कर दिया था और तब उन्होंने अपने मालिक की जान बचाने के लिए उस शेर को मार डाला था, तब से फरीद का नाम शेरखाँ पड़ गया जब शेरखा ने राजगद्दी संभाली तो वह शेरशाह सूरी के नाम से विख्यात हुआ उनका कुल नाम सूरी उनके गृह नगर “ सूर ” से लिया गया था |शेरशाह सूरी का इतिहासऔर जीवन परिचय
शेरशाह सूरी की शिक्षा
शेरशाह सूरी 15 वर्ष की आयु में घर छोड़कर जौनपुर चले गए थे वहां पर उन्होंने फारसी, इतिहास, साहित्य एवं अरबी का ज्ञान प्राप्त किया था वह बहुत ही कुशाग्र बुद्धि का था और उसकी योग्यता से प्रभावित होकर बिहार के सूबेदार जमाल खान ने उनके पिताजी को शेरखा के साथ अच्छा व्यवहार करने का आदेश दिया शेरशाह सूरी शुरू में बाबर की सेना में भर्ती हुआ था और इसी कारण से उसे मुगलो की सैन्य शक्ति और संगठन का संपूर्ण ज्ञान प्राप्त हुआ था उस समय भारत पर बाबर का शासन हुआ करता था
अफगानी बाबर के हाथों घागरा एवं पानीपत के युद्ध में हार गए थे परंतु उनकी शक्ति पूरी तरह से नष्ट नहीं हुई थी इसके बाद शेरशाह ने उन्हें फिर से संगठित किया था और वह संपूर्ण बिहार का शासक बन गया उन्होंने धीरे-धीरे बिहार में अपना प्रभुत्व स्थापित कर लिया था शेरशाह सूरी ने 1539 ईसवी में हुमायूं के साथ चौसा की लड़ाई लड़ी थी शेरशाह सूरी ने चौसा पर आक्रमण कर 1539 में उसे जीत लिया था इसके बाद 1540 में कन्नौज के साथ युद्ध लड़ा गया था यह युद्ध भी शेर शाह सुरी जीत गए थे चौसा और कन्नौज पर युद्ध कर उस पर विजय प्राप्त करके अपनी शक्ति को और अधिक बढ़ा लिया था
कन्नौज के युद्ध में विजय प्राप्त करने के बाद शेरशाह सूरी ने मुगलों से उनकी सत्ता छीन ली थी इन युद्धों के अलावा उन्होंने मालवा, रणथंबोर, बंगाल आदि प्रांतों पर अपनी विजय का ध्वज लहराया था शेरशाह सूरी ने हुमायूं को अपदस्थ कर “ दिल्ली राज सिहासन पर अपना अधिकार ” कर लिया था हुमायूं को भारत छोड़कर भाग कर जाना पड़ा था लगभग 15 वर्ष तक उसने निर्वासित जीवन व्यतीत किया इस 15 वर्ष की अवधि में शेरशाह सूरी और उसके उत्तराधिकारी होने उत्तर भारत पर अपने राज्य का विस्तार किया और शासन किया
शेरशाह सूरी द्वारा मुद्रा की शुरुआत
पहला रुपया शेरशाह सूरी के शासन में जारी हुआ था जो आज के रुपया का अग्रदूत है रुपया आज भारत, पाकिस्तान, नेपाल, श्रीलंका,इंडोनेशिया में राष्ट्रीय मुद्रा के रूप में प्रयोग किया जाता है |शेरशाह सूरी का इतिहासऔर जीवन परिचय
शेरशाह सूरी द्वारा इमारतों का निर्माण
शेर शाह सुरी को इमारत बनवाने का बहुत अधिक शौक था शेर शाह सुरी को भवनों एवं इमारतों से बहुत ही लगाव था उन्होंने दिल्ली का पुराना किला स्थापित करवाया जिसके अंदर उन्होंने एक सुंदर मस्जिद भी बनवाया है झेलम नदी के किनारे उन्होंने रोहतासगढ़ नामक किले का निर्माण कराया जो कि बहुत ही प्रसिद्ध है शेरशाह सूरी ने बिहार सासाराम में अपना मकबरा भी बनवाया और वह मकबरा स्थापत्य कला की दृष्टि से बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान रखता है शेरशाह सूरी व्यक्तिगत रूप से सुन्नी मुसलमान था शेरशाह सूरी ने लोक कल्याणकारी कार्य करते हुए सड़कें व सराय भी बनवाई पहली सड़क लाहौर से सोनार गांव बंगाल तक जाती थी जो सबसे लंबी सड़क थी यह सड़क सड़क- ए- आजम कहलाती थी इसी सड़क का नया नाम ग्रांड ट्रंक रोड है |शेरशाह सूरी का इतिहासऔर जीवन परिचय
शेरशाह सूरी की मृत्यु
शेरशाह सूरी ने 1540 -1545 ईसवी तक दिल्ली की गद्दी पर शासन किया और उन्होंने अपने अंतिम चढ़ाई कालिंजर राजा पर की थी उसकी सेना ने राजपूत किले की दीवार पर से घेरा डालने वालों पर बड़े-बड़े पत्थर लूढकाय और अंत में जब कालिंजर का किला फतह होने की स्थिति में था तब अचानक से ही बारूद में आग लग गई और इस आग में शेर शाह सुरी काफी जल गया इसके किले को तो उसने जीत लिया परंतु उसकी हालत बिगड़ती गई और अंत में शेरशाह सूरी की 22 मई 1545 ई. को मृत्यु हो गई थी शेरशाह सूरी एक सेनानायक, सैनिक, शासक, राजनीतिक तथा राष्ट्र निर्माता के रूप में उनका चरित्र बहुत ही सराहनीय है |शेरशाह सूरी का इतिहासऔर जीवन परिचय