श्री नानाजी देशमुख का जीवन परिचय, श्री नानाजी देशमुख का जन्म , दीनदयाल शोध संस्थान की स्थापना , नानाजी देशमुख को प्राप्त सम्मान , श्री नाना जी देशमुख का निधन
श्री नानाजी देशमुख का जीवन परिचय
श्री नानाजी देशमुख एक प्रख्यात सामाजिक कार्यकर्ता थे जिन्होंने शिक्षा स्वास्थ्य और ग्रामीण आत्मनिर्भरता के क्षेत्र में कार्य किया था जिसमें सभी को शिक्षा मिली है उनके बिलासा थी इसके लिए उन्होंने 1950 में उत्तर प्रदेश देश का पहले “शिशु मंदिर विद्यालय” की स्थापना की थी ग्रामीण क्षेत्र में लोगों की रोजमर्रा की जरूरत है जैसे ग्रामीण स्वास्थ्य, शिक्षा, बिजली पानी आदि पूरी करने के लिए बहुत प्रयास किए थे
नाना जी ने उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश के कई सारे गांव में विकास कार्य किए थे 1969 में नाना जी ने चित्रकूट के विकास कार्य को करने का दृढ़ संकल्प किया था नाना जी ने गरीब और पिछड़े वर्ग को ऊंचा उठाने के लिए प्रयास किया था नानाजी देशमुख भारतीय जन संघ के नेता और राज्यसभा के सदस्य भी रह चुके थे 60 साल की उम्र के बाद उन्होंने राजनीतिक जीवन को त्याग कर सामाजिक और रचनात्मक जीवन की शुरुआत की थी इस कार्य के दौरान वे आश्रमों में रहे | श्री नानाजी देशमुख का जीवन परिचय |
श्री नानाजी देशमुख का जन्म
इनका जन्म 11 अक्टूबर 1916 को मराठवाड़ा के कदोली गांव में हुआ और इनका नाम “चंडीका प्रसाद” रखा गया इनके पिता का नाम “अमृतराव देशमुख” था तथा माता का नाम ‘राजा बाई’ था परंतु हर कोई इन्हें प्यार से नाना कहा करता था नाना शैशव काल में ही अपने माता पिता के प्यार और स्नेह से वंचित हो गए थे लेकिन शुरुआत से ही वह बहुत प्रतिभाशाली थे इनका मक़सद उच्च शिक्षा प्राप्त करना था लेकिन नियति ने उनके लिए कुछ और ही लिख रखा था नाना जी के पास पुस्तक खरीदने तक के पैसे नहीं थे लेकिन उनके अंदर पढ़ने लिखने की अभिलाषा थी
नाना जी ने हाई स्कूल की पढ़ाई राजस्थान के सीकर जिले से पूरी की थी हाई स्कूल की पढ़ाई के दौरान उन्हें छात्रवृत्ति भी मिली थी उच्च शिक्षा के लिए उनके पास पैसे नहीं थे तभी उन्होंने सब्जी बेचकर पैसे जुटाए वह मंदिरों में रहे और 1939 में बिरला कॉलेज में प्रवेश के लिए राजस्थान के पिलानी के लिए रवाना हुए और अगले ही वर्ष राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक बन गए थे 15 अगस्त 1940 को नाना जी को संघ का कार्य शुरू करने के लिए गोरखपुर भेजा गया उस समय उनकी जेब में मात्र ₹14 थे प्रारंभ में उन्हें एक के बाद एक विभिन्न स्थानों पर रहना पड़ा
अपने मिलनसार स्वभाव से वह महंत दिग्विजय नाथ, गीता प्रेस के संस्थापक भाई जी हनुमान प्रसाद, कांग्रेसी नेता बाबा राघव दास आदि जैसे प्रतिष्ठित लोगों के संपर्क में आए विपत्तियों पर विजय प्राप्त करने की अपनी असाधारण योग्यता के द्वारा वे संघ की शाखाओं का तेजी से विस्तार करने में सक्षम हुए नानाजी देशमुख ने लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक की राष्ट्रवादी विचारधारा से प्रेरित होकर समाज सेवा और सामाजिक गतिविधियों में रुचि ली उन्होंने अपना संपूर्ण राष्ट्र की सेवा में अर्पित करने के लिए RSS को दे दिया था
दीनदयाल शोध संस्थान की स्थापना
स्वतंत्रता के बाद जनसंघ की स्थापना के दौरान नानाजी ने एक संगठन कर्ता और एक राजनीतिज्ञ के रूप में अपनी उत्कृष्टता साबित कि जल्द ही वे गैर कांग्रेसी राजनीति का एक प्रमुख केंद्र बन गए और “पंडित दीनदयाल उपाध्याय” के एक सुयोग्य और अभिन्न साथी बन गए थे 1968 में पंडित जी के असामयिक निधन के बाद उन्होंने उनकी स्मृति में 1972 मे दीनदयाल “शोध संस्थान” की स्थापना की और उसके माध्यम से देश में एक वैचारिक संवाद की शुरुआत की थी
इन्होंने 74 साल की उम्र में “चित्रकूट ग्रामोदय विश्वविद्यालय” की स्थापना की थी यह भारत का पहला ग्रामीण विश्वविद्यालय है और वे इसके पहले कुलाधिपति थे उन्होंने देश भर में जेपी आंदोलन के प्रति जन भावना जगाने में प्रमुख भूमिका निभाई और वह लोकनायक जयप्रकाश नारायण के घनिष्ठ और अंतरंग मित्र बन गए थे आपातकाल में जेल में बंद होने के दौरान उन्होंने जनता पार्टी की नींव रखी 1947 में जनता पार्टी सत्ता में आई हालांकि, उन्होंने केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल किए जाने के प्रस्ताव को ठुकरा दिया था 1 वर्ष के भीतर उन्होंने राजनीति छोड़ने की घोषणा कर दी थी | श्री नानाजी देशमुख का जीवन परिचय |
नानाजी देशमुख को प्राप्त सम्मान
वर्ष 1978 में नाना जी ने सामाजिक पुनर्निर्माण के लिए अपनी संपूर्ण ऊर्जा और अनुभव सार्वजनिक जीवन के प्रति समर्पित करने का निर्णय किया उन्होंने अपना समूचा जीवन एकात्मक मानववाद के दर्शन को जमीनी स्तर पर मान्यता प्रदान करने में लगा ने का प्रण लिया ‘गोंडा’, बीड और ‘चित्रकूट’ इस संकल्प की जीती जागती मिसाल है ग्रामीण विकास का चित्रकूट मॉडल अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सामाजिक पुनर्निर्माण का एक सुप्रसिद्ध उदाहरण है जो सहज और अनुकरणीय है 1999 में राष्ट्र की अग्रणी सेवा के लिए उन्हें पदम भूषण से सम्मानित किया गया था
नानाजी देशमुख आधुनिक युग के ऋषि थे, जिन्होंने अपना जीवन राष्ट्र सेवा में समर्पित कर दिया था नानाजी देशमुख एक सच्चे भारतीय समाजसेवी थे उनके उत्कृष्ट कार्यो के लिए वर्ष 2019 में उनको सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार भारत रत्न से सम्मानित किया गया असंख्य लोग नाना जी के जीवन से प्रेरणा लेते रहे और भविष्य में भी लेते रहेंगे | श्री नानाजी देशमुख का जीवन परिचय |
श्री नाना जी देशमुख का निधन
श्री नानाजी देशमुख का 27 फरवरी 2010 को 95 साल की उम्र में चित्रकूट में निधन हो गया, और उनकी वसीयत के अनुसार उनके शरीर को मेडिकल छात्रों को दान कर दिया गया उन्होंने अपना शरीर छात्रों के मेडिकल शोध हेतु दान करने का वसीयतनामा मरने से काफी समय पहले 1997 में ही लिख कर दे दिया था
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