सिरोही का इतिहास, सिरोही और खिलजी का युद्ध, महादेव का चमत्कार , सिरोही की जीत का जश्न
सिरोही का इतिहास
सिरोही और खिलजी के बीच में दो बार युद्ध हुआ था और इस युद्ध में दोनों बार ही खिलजी की हार हुई थी अलाउद्दीन खिलजी एक बहुत ही क्रूर राजा था वह हिंदू मंदिरों को नष्ट कर देता था और वहां के लोगों पर बहुत ही अत्याचार करता था अलाउद्दीन खिलजी ने बहुत से राजाओं को हराया था खुद को सिकंदर कहने वाला अलाउद्दीन खिलजी स्वयं सिरोही से दो बार पराजित हुआ था सिरोही रियासत के महाराजा विजय राज ने अपनी प्रजा और अपने राजा, महाराजाओं की मदद से अलाउद्दीन खिलजी को दो बार धूल चटाई थी | सिरोही का इतिहास |
सिरोही और खिलजी का युद्ध
1298 में दिल्ली के शक्तिशाली सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी ने गुजरात के सोलंकी साम्राज्य को समाप्त किया था और हिंदुओं को अपमानित करने के लिए सोलंकी साम्राज्य द्वारा स्थापित महादेव के 7 मंजिला मंदिर को ध्वस्त किया था यह मंदिर उस समय महादेव का सबसे प्रसिद्ध सात मंजिला मंदिर था अलाउद्दीन खिलजी ने एक गाय को मार कर उसके चमड़े में शिवलिंग को लपेटकर हाथी के पैरों से बांधकर उसे घसीटते हुए दिल्ली की ओर रवाना हो गया
जब खिलजी की सेना शिवलिंग को इस स्थिति में लेकर ‘आबू पर्वत’ की तलहटी चंद्रावती महानगरी के निकट पहुंची तब इस बात की खबर सिरोही के राजा विजय राज को मिल गई इस बात की सूचना मिलने के बाद विजय राज का खून खौल उठा और उन्होंने हिंदू धर्म की आस्था को अपमानित करने वाले का प्रतिकार करने का निश्चय किया उन्होंने शिवलिंग को मुगल सेना से मुक्त कराने का फैसला किया इसके बाद उन्होंने एक पत्र मेवाड़ और एक पत्र जालौर के राजा “कानड़देव” के पास पहुंचाया और उन्हें बताया कि धर्म की रक्षा करने के लिए अब प्राणों की आहुति देने का समय आ गया है
इसके बाद विजय राज ने राजा महाराजाओं की मदद से चंद्रावती में खिलजी सेना पर हमला कर दिया वहां पर बहुत ही भीषण युद्ध हुआ और इस युद्ध में विजय राज के नेतृत्व में राजपूतों की सेना विजय हुई और दिल्ली सुल्तान की सेना हार गई दीपावली के दिन सिरोही के महाराजा विजय राज ने रूद्र माल के इस शिवलिंग को विधि विधान से स्थापित करवाया इस युद्ध में बहुत तलवारे चली थी इस कारण इस मंदिर का नाम सारणेश्वर रखा गया जब अलाउद्दीन खिलजी को छोटी सेना से अपनी सेना की शर्मनाक हार का पता चला तो बहुत ही क्रोधित हुआ और उसने 10 महीने बाद एक विशाल सेना को तैयार किया इसके बाद उसने अपनी विशाल सेना के साथ सिरोही पर फिर से आक्रमण किया
अलाउद्दीन खिलजी का यह निश्चय था कि वह सारणेश्वर मंदिर के शिवलिंग को तोड़कर उसके टुकड़े-टुकड़े कर देगा और सिरोही नरेश विजय राज का सिर काटेगा सिरोही की प्रजा ने सिरोही नरेश विजय राज से विनती की कि वह धर्म की रक्षा के लिए मर मिटने को तैयार है इसके बाद सिरोही और अलाउद्दीन खिलजी के बीच में भयंकर युद्ध हुआ और बहुत ही रक्तपात हुआ इस युद्ध में राजपूत सेना ने मुगल सेना पर इतना भयंकर प्रहार किया कि उसे पराजित होना पड़ा इस युद्ध में हारने के बाद अलाउद्दीन खिलजी ने सारणेश्वर मंदिर के 1 किलोमीटर दूर ही अपना पड़ाव डाल लिया था | सिरोही का इतिहास |
महादेव का चमत्कार
यहीं पर अलाउद्दीन खिलजी पर महादेव का प्रकोप हुआ और वह भयंकर कोड से ग्रस्त हो गया जो भी अलाउद्दीन खिलजी के पास जाता था वह बीमारी उसे भी हो जाती थी उस समय उसके सैनिकों ने भी उसके पास जाना बंद कर दिया था 1 दिन महादेव का चमत्कार हुआ और उसकी सेना में उसके शिकारी कुत्ते कहीं से भीग कर उसके पास आए जब वह सुल्तान के पास पहुंचे तो उन्होंने अपने बदन को झटका उस समय कुत्तों के शरीर का पानी अलाउद्दीन खिलजी के शरीर पर गिरा जहां-जहां अलाउद्दीन खिलजी का शरीर पर कुत्तों का पानी गिरा वहां से उनकी बीमारी ठीक हो गई थी
इसके बाद अलाउद्दीन खिलजी ने अपने एक सेनापति को बुलाया वह सेनापति काफूर बहुत ही बुद्धिमान था और उसे पता था कि कोड के प्रभाव से कैसे बचा जा सकता है इसलिए उसने अपने पूरे बदन को ढक कर अलाउद्दीन खिलजी के पास आया अलाउद्दीन खिलजी ने सेनापति से कहा कि जहां से यह कुत्ते भीग कर आए हैं उस स्थान का पता करो इसके बाद काफूर ने उन कुत्तों को कई घंटों तक धूप में बांधे रखा जब कुत्ते प्यास के कारण बेहाल हो गए तब उसने उन्हें खोल दिया इसके बाद वह कुत्ते पानी की ओर भागे तब कापुर भी अपने घोड़े पर सवार होकर उनका पीछा करने लगा
इसके बाद वह कुत्ते सारणेश्वर मंदिर के निकट कुंड में जाकर पानी पीने लगे हार के कारण वह सेनापति सारणेश्वर के क्षेत्र में नहीं जा सकता था इसके बाद उस सेनापति ने अलाउद्दीन खिलजी को आकर सारी बात बताई इसके बाद अलाउद्दीन खिलजी ने अपनी बीमारी का कारण बताकर वहां के नरेश विजय राज से इस कुंड का पानी मांगा इसके बाद विजय राज ने इंसानियत को सबसे बड़ा धर्म मानते हुए अलाउद्दीन खिलजी को इस कुंड का पानी स्नान के लिए दे दिया था अलाउद्दीन खिलजी इस कुंड के पानी से स्नान करने के बाद एकदम स्वस्थ हो गया था इसके बाद अलाउद्दीन खिलजी सारणेश्वर के क्षेत्र में आया और इसे देवी का चमत्कार मान कर सिरोही पर कभी भी हमला नहीं करने का वादा किया था और वह वचन देकर दिल्ली वापस लौट आया | सिरोही का इतिहास |
सिरोही की जीत का जश्न
जिस दिन विजय राज ने अपनी प्रजा और महाराजाओं की मदद से अलाउद्दीन खिलजी को धूल चटाई थी वह दिवाली का दिन था और तिथि 12 सितंबर 1299 थी इस जीत की खुशी में महाराज विजय राज ने सारणेश्वर क्षेत्र का 1 दिन का राज क्षेत्र के रेबारियों को दे दिया इसके बाद से यह वचन एक परंपरा बन गई और प्रतिवर्ष दीपावली के दिन सारणेश्वर क्षेत्र को 1 दिन के लिए यहां के पूर्व राज परिवार की ओर से रेबारी समाज को आधिपत्य दिया जाता है यह परंपरा अब यहां की एक विजय दिवस के रूप में स्थापित हो गई है इतने सालों बाद भी आज इस परंपरा को निभाया जा रहा है इस दिन को सिरोही रियासत की जीत और अलाउद्दीन खिलजी की हार के रूप में विजय दिवस मनाया जाता है | सिरोही का इतिहास |