सिवाना दुर्ग का इतिहास

सिवाना दुर्ग का इतिहास,  सिवाना दुर्ग का निर्माण, सिवाना किले पर अधिकार, सिवाना दुर्ग का जोहर , 

सिवाना दुर्ग का निर्माण

सिवाना दुर्ग भारत के राजस्थान राज्य के बाड़मेर शहर की छप्पन पहाड़ियों में ‘हल्देश्वर पहाड़ी’ पर स्थित है यह इतिहास का बड़ा ही गौरवशाली दुर्ग है सिवाना के इस दुर्ग का निर्माण राजा भोज के पुत्र वीर नारायण परमार ने 10वीं शताब्दी में करवाया था यह किला ‘गिरी दुर्ग’ और ‘वन दुर्ग’ दोनों श्रेणियों में शामिल है सिवाना किले को कई अन्य नामों से भी जाना जाता है इस का प्राचीन नाम कुंबाना दुर्ग था जबकि इसे मारवाड़ की शरण स्थली या मारवाड़ के राजाओं की ‘शरणस्थली’ भी कहते हैं क्योंकि मारवाड़ के शासक राव मालदेव राठौड़ और राव चंद्रसेन राठौड़ ने आपत्ति के समय यहां पर शरण ली थी

सिवाना किले में “कुमट” नामक झाड़ी बहुत मात्रा में मिलती है इस कारण इसे “कुमट दुर्ग” भी कहते हैं इसके अतिरिक्त सिवाना किले को “जालौर दुर्ग की कुंजी” के रूप में भी जाना जाता है बाद में यह दुर्ग सोनगरा चौहानों के अधिकार में आ गया यह सोनगरा चौहान बहुत ही वीर और प्रतापी हुए थे तथा इन्होंने ऐबक और इल्तुतमिश जैसे शक्तिशाली गुलाम वंश के सुल्तानों का सफलतापूर्वक प्रतिरोध किया और अपनी स्वतंत्रता बनाए रखी | सिवाना दुर्ग का इतिहास |

सिवाना किले पर अधिकार

 जब सिवाना दुर्ग में सातलदेव सोनगरा चौहान का राज था जो जालौर के शासक कानड़ देव का भतीजा था तब अलाउद्दीन की सेना का पहला आक्रमण सिवाना दुर्ग में 1308 में हुआ था तब सातलदेव और कानड़ देव ने अलाउद्दीन की सेना का डटकर मुकाबला किया था इस युद्ध में अलाउद्दीन खिलजी की सेना हार गई थी इसके बाद 1310 में पुनः खिलजी सेना ने आक्रमण किया और सिवाना दुर्ग तक पहुंचने में सफल हुई तब सिवाना दुर्ग का पहला शाका और पहला जोहर हुआ था

इस शाका में सातल देव केसरिया वस्त्र धारण कर इस युद्ध में कूद पड़े थे और वीरगति को प्राप्त हो गए इस विषय पर ‘अलाउद्दीन खिलजी’ ने सिवाना दुर्ग का नाम बदलकर “खैराबाद” रखा परंतु खिलजी की मृत्यु के साथ ही उनके वंश का सिवाना दुर्ग पर आधिपत्य भी समाप्त हो गया इसके बाद सिवाना दुर्ग पर राव मल्लीनाथ राठौड़ के भाई “जैतमाल” और उसके वंशजों का आधिपत्य रहा

सन 1538 में राव मालदेव ने सिवाना के तत्कालीन शासक ‘डूगरसी राठौड़’ को पराजित कर दुर्ग पर अधिकार कर लिया मालदेव के आधिपत्य का सूचक एक शिलालेख किले के भीतर आज भी विद्यमान है इसके बाद मालदेव के पुत्र चंद्रसेन ने किले को केंद्र बनाकर मुगल अकबर की सेनाओं का लंबे समय तक विरोध किया परंतु परिस्थितियां विपरीत होने के कारण सिवाना दुर्ग मुगल आधिपत्य में आ गया था

मुगल अधिपत्य में आने के बाद अकबर ने मालदेव के 1 पुत्र रायमल को सिवाना दुर्ग दिया लेकिन कुछ समय बाद ही रायमल की मृत्यु हो गई थी इसके बाद सिवाना दुर्ग रायमल के पुत्र कल्याण दास के अधिकार में आ गया अकबर और कल्याण दास के मध्य में संबंध अच्छे नहीं थे इसी कारण कल्याण दास ने कई युद्ध किए और युद्ध करते हुए वीरगति को प्राप्त हो गया | सिवाना दुर्ग का इतिहास |

सिवाना दुर्ग का जोहर 

सिवाना दुर्ग में दो साका और दो जोहर हुए हैं सिवाना दुर्ग में पहला शाका एवं जोहर 1308 में अलाउद्दीन खिलजी और सातल देव के मध्य युद्ध में हुआ जब अलाउद्दीन खिलजी के सेनापति ‘कमालुद्दीन’  ने राजा सातल देव के सेनापति ‘बावला पवार’ को दुर्ग का लालच देकर किले के भीतर मौजूद प्रमुख पेयजल स्त्रोत “भांडेलाव” तालाब को गौ मांस से दूषित करवा दिया जब दुर्ग की रक्षा का कोई अन्य उपाय नहीं दिखा तब राजा सातल देव और उसके पुत्र सोमेश्वर के नेतृत्व में राजपूतों ने केसरिया किया तथा राजपूत रानियों ने जौहर किया

सिवाना किले का दूसरा साका एवं जोहर1559 ईस्वी में वीरवर कला राठौड़ और अकबर के मध्य युद्ध में हुआ अकबर की तरफ से राजा उदय सिंह ने इस युद्ध का नेतृत्व किया था जिसमें सिवाना के वीरकल्ला रायमल  के नेतृत्व में राजपूत योद्धाओं ने केसरिया किया और “हाड़ी रानी” के नेतृत्व में दुर्ग की रानियों ने जोहर किया था यह हाड़ी रानी बूंदी के “राव सुरजन हाड़ा” की पुत्री थी सिवाना किले में वीरकला रायमल का ‘थड़ा’, महाराजा अजित सिंह का दरवाजा और हल्देश्वर महादेव का मंदिर ऐतिहासिक दर्शनीय स्थल है सिवाना में हल्देश्वर मंदिर, भीमगोड़ा मंदिर, आशापुरी माता का मंदिर ,अमृतिया कुआं आदि देखने लायक है

सिवाना किले के परकोटे को “शहर पनाह” नाम से जाना जाता है जिसका निर्माण मारवाड़ के शासक राव मालदेव ने करवाया था शिवाना किले को देखकर अलाउद्दीन खिलजी ने कहा था -सिवाना दुर्ग भयानक जंगल में है इस पहाड़ी दुर्ग पर काफिर सातल देव ‘सीमुर्ग’ की भांति रहता है और उसके कई हजार काफिर सरदार पहाड़ी गिद्धों की भांति उसकी रक्षा करते हैं सिवाना किले में “शेर- ए- राजस्थान” नाम से विख्यात लोक नायक ‘जय नारायण व्यास’ को भी बंदी बनाकर रखा गया था | सिवाना दुर्ग का इतिहास |

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