सोमनाथ मंदिर का इतिहास, सोमनाथ मंदिर की पौराणिक कथा, सोमनाथ मंदिर पर आक्रमण, आजादी के बाद सोमनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण, सोमनाथ मंदिर का बाण स्तंभ, सोमनाथ मंदिर की विशेषता
सोमनाथ मंदिर का इतिहास
सोमनाथ मंदिर ऐसा हिंदू मंदिर है जिसकी गिनती 12 ज्योतिर्लिंगों में पहले ज्योतिर्लिंग के तौर पर होती है यह मंदिर इतना भव्य और समृद्ध है कि बाहर से जो कोई भी आता है उसकी पहली नजर सोमनाथ मंदिर पर ही पड़ती है इसी वजह से सोमनाथ मंदिर पर करीब 17 बार आक्रमण हुआ लेकिन हर बार इसका पुनर्निर्माण किया गया सोमनाथ मंदिर का पूरा नाम सोमनाथ ज्योतिर्लिंग है यह मंदिर गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र के वेरावल के नजदीक स्थित है सोमनाथ मंदिर एक पवित्र तीर्थ स्थल है
यहां भगवान कृष्ण ने यदुवंश का सहार करने के बाद अपनी देह का त्याग किया था इस मंदिर को सबसे पहले सोमदेव ने बनवाया उस समय यह सोने का था इसके बाद द्वापर युग में जब श्रीकृष्ण गुजरात जाकर बसे तब उन्होंने लकड़ी से इसका निर्माण कराया आखिर में महाराजा भीमदेव ने इस मंदिर का पत्थरों पत्रों से निर्माण करवाया सोमनाथ का ज्योतिर्लिंग 12 ज्योतिर्लिंग में से एक माना जाता है | सोमनाथ मंदिर का इतिहास |
सोमनाथ मंदिर की पौराणिक कथा
इस पवित्र ज्योतिर्लिंग की स्थापना वही की गई थी जहां भगवान शिव ने दर्शन दिए थे असल में ज्योतिर्लिंग दो शब्दों से मिलकर बना है ज्योति का अर्थ होता है- प्रकाश और लिंग का अर्थ है- छवि ज्योतिर्लिंग को भगवान शिव के रूप में पूजा जाता है इन 12 जगहों पर साक्षात भगवान शिव प्रकट हुए थे सोमदेव ने दक्ष प्रजापति की 27 कन्याओं से विवाह किया था वह रोहिणी को सबसे ज्यादा प्यार और सम्मान दिया करते थे इसलिए बाकी पत्नियों ने सोमदेव (चंद्रदेव) की शिकायत है
अपने पिता दक्ष प्रजापति से कर दी की एक कन्या को छोड़कर बाकी के साथ अन्याय को देखकर राजा दक्ष क्रोध में आ गए और उन्होंने चंद्रदेव को श्राप दे दिया उन्होंने कहा अब हर दिन तुम्हारा तेज कम होता जाएगा श्राप के अनुसार हर दूसरे दिन चंद्र का तेज घटने लगा और वह कर परेशान हो उठे और उन्होंने भगवान शिव की आराधना शुरू कर दी
आखिर में भगवान शिव ने प्रसन्न होकर चंद्र का निवारण किया इस तरह सोमदेव के कष्ट को दूर करने वाले भगवान जी की स्थापना करवाई गई जिसका नामकरण सोमनाथ हुआ चंद्रमा के नाम पर सोमनाथ बने भगवान शिव संसार में सोमनाथ के नाम से प्रसिद्ध हुए इस मंदिर में भगवान शिव सकार लिंग रूप में प्रकट हुए थे | सोमनाथ मंदिर का इतिहास |
सोमनाथ मंदिर पर आक्रमण
सोमनाथ मंदिर को 1024 में महमूद गजनवी ने बुरी तरह से नष्ट कर दिया था वह मंदिर से सोना, चांदी ,हीरे, जवाहरात लूट कर अपने देश वापस चला गया जब महमूद गजनबी उस शिवलिंग को नहीं तोड़ पाया तब उसने मंदिर के आसपास आग लगा दी उस वक्त सोमनाथ मंदिर में नीलमणि के 56 खंबे लगे थे जिसमें हीरे- मोती के अलावा अलग-अलग तरह के रत्न जड़े थे लेकिन बहुमूल्य रत्नों को लुटेरों ने लूट लिया और मंदिर को भी तहस-नहस कर दिया
महमूद गजनबी के मंदिर लूटने के बाद राजा भीमदेव ने इस मंदिर की फिर से प्रतिष्ठा की इसके बाद 1093 में सिद्धराज जयसिंह ने भी मंदिर की प्रतिष्ठा की और उसकी पवित्रीकरण में पूरा सहयोग किया 1168 में विजेश्वर कुमार पाल ने जब जैन आचार्य श्री हेमचंद्र के साथ सोमनाथ की यात्रा की तो उन्होंने भी मंदिर में काफी कुछ सुधार करवाएं इस तरह जहां भारतीय राजा बार-बार मंदिर का पुनर्निर्माण कराने में जुटे थे वही मुसलमान इसे बार-बार नष्ट करने में लगे थे अलाउद्दीन खिलजी ने 1297 ईस्वी में सोमनाथ मंदिर को ध्वस्त किया उसके सेनापति नुसरत खा ने मंदिर को खूब लूटा 1395 ईस्वी में गुजरात का सुल्तान मुजफ्फर शाह भी मंदिर का विध्वंस करने में जुट गया
अपने पिता की राह पर चलते हुए अहमदशाह ने फिर से 1413 ईस्वी में सोमनाथ मंदिर को तोड़ डाला इस तरह मुस्लिम शासकों ने इस मंदिर पर लगातार हमले किए महमूद गजनवी का हमला सबसे ज्यादा चर्चित रहा क्योंकि उसने हमले के दौरान ना जाने कितने लोगों का कत्लेआम किया है उसने भारत पर 17 बार हमला किया और लगभग 5000 सैनिकों के साथ सोमनाथ मंदिर पर हमला किया उस समय लगभग 25000 लोग मंदिर में पूजा करने के लिए आए हुए थे | सोमनाथ मंदिर का इतिहास |
आजादी के बाद सोमनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण
आजादी के बाद सोमनाथ मंदिर की पुनः प्रतिष्ठा की गई थी इस दौरान 108 नदियों के जल से भगवान शिव का अभिषेक किया गया था आजादी के बाद देश के पहले राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद ने देश की शान और स्वाभिमान को बढ़ाने के लिए सोमनाथ मंदिर का फिर से भव्य निर्माण करवाया
आज के समय में यह मंदिर भारतीय संस्कृति और सनातन धर्म की शोभा को बढ़ाए हुए हैं सोमनाथ का मूल मंदिर जो बार बार नष्ट किया गया था वह आज भी अपने मूल स्थान समुद्र के किनारे ही हैं भारत के पूर्व गृहमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल ने यहां भव्य मंदिर का निर्माण करवाया सोमनाथ के मूल मंदिर से कुछ ही दूरी पर अहिल्याबाई द्वारा बनवाया गया सोमनाथ का मंदिर है | सोमनाथ मंदिर का इतिहास |
सोमनाथ मंदिर का बाण स्तंभ
इसी सोमनाथ मंदिर के परिसर में मौजूद है बाण स्तंभ, मंदिर तो नया बनाया गया है लेकिन स्तंभ बहुत ही पुराना है इसको मंदिर के साथ-साथ समय-समय पर ठीक किया गया है छठी शताब्दी से मौजूद है बाण स्तंभ यह दिशा बताने वाला यंत्र है 1420 साल पहले इस स्तंभ के होने का सबूत मिलता है इसका मतलब यह कि यहस्तंभ छठी सदी में पहले से ही यहां मौजूद है शायद इसी वजह से स्तंभ का इतिहास में जिक्र किया गया है लेकिन यह कोई नहीं जानता किसका निर्माण कब हुआ था किसने करवाया था और क्यों करवाया था
यह एक दिशा बताने वाला यंत्र स्थान है जिस पर समुद्र की ओर इशारा करता हुआ एक बाण मौजूद है और इसलिए इसे बाण स्तंभ कहते हैंइस वतन के ऊपर यह लिखा हुआ है कि इस समुंदर से लेकर अंटार्कटिका तक सीधा एक रास्ता है उस रास्ते में कोई भी रुकावट नहीं है यानी कि कोई भी टापू या कुछ भी बना हुआ नहीं है लिखा है इस मंदिर से दक्षिण तक बिना किसी रूकावट के एक रास्ता है | सोमनाथ मंदिर का इतिहास |
सोमनाथ मंदिर की विशेषता
मंदिर के भूगर्भ में सोमनाथ लिंग की स्थापना की गई है इसके अलावा यहां पार्वती ,सरस्वती ,लक्ष्मी, गंगा और नंदी की,भी मूर्तियां स्थापित है भूमि के ऊपरी हिस्से में शिवलिंग से ऊपर अहिलेस्वर मूर्ति है वही मंदिर परिसर में गणेश जी का मंदिर है जबकि उत्तर द्वार के बाहर अघोर लिंग की मूर्ति स्थापित है नगर के द्वार पास गौरीकुंड नामक सरोवर है जिस के नजदीक एक प्राचीन शिवलिंग है सोमनाथ मंदिर के नीचे भी 3 मंजिला इमारत मौजूद है यह इमारत पत्थरों से बनी हुई है और इसमें एक प्रवेश द्वार भी है सोमनाथ मंदिर के नीचे कुछ गुफाओं के होने का भी सबूत मिला है | सोमनाथ मंदिर का इतिहास |
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