सुरेंद्रनाथ बनर्जी का जीवन परिचय

सुरेंद्रनाथ बनर्जी का जीवन परिचय, सुरेंद्रनाथ बनर्जी का जन्म, सुरेंद्रनाथ बनर्जी का राजनीतिक जीवन, सुरेंद्रनाथ बनर्जी की मृत्यु

सुरेंद्रनाथ बनर्जी का जीवन परिचय

 सुरेंद्रनाथ बनर्जी राष्ट्रीय राजनीति में एक अग्रणी और संयमित नेता थे जिन्होंने अंग्रेजी शिक्षित मध्यम वर्ग में सांप्रदायिक सद्भाव के आदर्शों का विकास किया था ब्रिटिश शासन और भारत की प्रगति में विश्वास रखते थे उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय समिति की स्थापना की जो प्रारंभिक दौर के भारतीय राजनीतिक संगठनों में से एक था और बाद में वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता बन गए वह “राष्ट्रगुरु” के उपनाम से भी जाने गए थे 

सुरेंद्रनाथ बनर्जी कांग्रेस के उन नरमपंथी नेताओं में शामिल थे जिन्होंने ब्रिटिश शासन का सदैव विरोध किया और देशवासियों के हितों को आगे बढ़ाया सुरेंद्रनाथ बनर्जी ने हमेशा देशवासियों के हितों के लिए अंग्रेजी हुकूमत पर दबाव डालकर कानून में बदलाव लाने की कोशिश की थी बनर्जी सहित नरमपंथी नेताओं का गरम पंथी दल के नेताओं के साथ इस बात को लेकर मतभेद था कि गरम पंथी राजनीतिक व्यवस्था में परिवर्तन लाकर भारतीयों को शासन का अधिकार दिलाना चाहते थे और इसके लिए वे हिंसात्मक तरीके से भी अपना सकते थे | सुरेंद्रनाथ बनर्जी का जीवन परिचय |

सुरेंद्रनाथ बनर्जी का जन्म 

सुरेंद्रनाथ बनर्जी का जन्म 10 अगस्त 1848 को कोलकाता में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था वह अपने पिता दुर्गा चरण बनर्जी के उदार व प्रगतिशील विचारों से बहुत प्रभावित थे इनके पिताजी एक चिकित्सक थे उनकी प्रारंभिक शिक्षा परिवार के पैतृक शिक्षा संस्थान “हिंदू कॉलेज” में हुई कलकत्ता विश्वविद्यालय से स्नातक करने के बाद रमेश चंद्र दत्त और बिहारी लाल गुप्ता के साथ सन 1868 में भारतीय सिविल सेवा परीक्षा में बैठने के लिए इंग्लैंड चले गए इसके बाद उन्होंने 1869 में परीक्षा उत्तीर्ण कर ली

इससे पूर्व 1867 ईस्वी में सत्येंद्र नाथ टैगोर आई.सी.एस. बनने वाले पहले भारतीय बन चुके थे पर उम्र से संबंधित विवाद को लेकर उनका चयन रद्द कर दिया गया पर न्यायालय के हस्तक्षेप के बाद वे एक बार फिर परीक्षा में बैठे और सन 1871 में दोबारा चयनित हुए थे चयन के बाद उन्हें सिलहट में सहायक मजिस्ट्रेट बनाया गया पर ब्रिटिश प्रशासन ने उन पर नस्ली भेदभाव का आरोप लगाकर उन्हें सरकारी नौकरी से हटा दिया उन्होंने यह महसूस किया कि एक भारतीय होने के नाते उन्हें यह सब भुगतना पड़ रहा है अपने इंग्लैंड प्रवास के दौरान उन्होंने एडमंड बुर्के और दूसरे उदारवादी दार्शनिकों की रचनाएं पढ़ी इससे उन्हें ब्रिटिश सरकार का विरोध करने में सहायता मिली | सुरेंद्रनाथ बनर्जी का जीवन परिचय |

सुरेंद्रनाथ बनर्जी का राजनीतिक जीवन  

सन 1875 में भारत वापस आने के बाद वह फ्री चर्च इंस्टिट्यूशन और रिपन कॉलेज में अंग्रेजी के प्रोफेसर बन गए इसके बाद उन्होंने राष्ट्रीय, उदारवादी, राजनीतिक और भारतीय इतिहास जैसे विषय पर सार्वजनिक व्याख्यान देने शुरू कर दिए थे 26 जुलाई 1876 को उन्होंने “आनंद मोहन बोस” के साथ मिलकर “इंडियन नेशनल एसोसिएशन” की स्थापना की यह भारत के सबसे शुरुआती राजनीतिक संगठनों में से एक था उन्होंने इस संगठन के माध्यम से भारतीय सिविल सेवा में भारतीय उम्मीदवारों के आयु सीमा के मुद्दों को उठाया

उन्होंने देश भर में अपने भाषणों के माध्यम से ब्रिटिश अधिकारियों द्वारा नस्ल भेद की नीति की घोर निंदा की और धीरे-धीरे पूरे देश में प्रसिद्ध हो गए इसके बाद सन 1879 में उन्होंने ‘द बंगाली’ समाचार पत्र की स्थापना की 1883 में जब अपने पत्र में छपे एक लेख के कारण उन्हें गिरफ्तार किया गया तब बंगाल समेत देश के दूसरे शहरों जैसे- आगरा ,अमृतसर, लाहौर और पुणे में इसका घोर विरोध हुआ धीरे-धीरे इंडियन नेशनल एसोसिएशन के सदस्यों की संख्या भी बढ़ गई और सन 1885 में सुरेंद्रनाथ बनर्जी ने इसका विलय “भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस” के साथ कर दिया क्योंकि दोनों संगठनों का लक्ष्य एक ही था बाद में उन्हें दो बार कांग्रेस का अध्यक्ष चुना गया सुरेंद्रनाथ बनर्जी बंगाल विभाजन (1905)का पुरजोर विरोध करने वाले अग्रणी नेताओं में से एक थे

उन्होंने आगे बढ़कर आंदोलन में भाग लिया और विरोध प्रदर्शन और याचिकाओं का आयोजन किया जिसके फलस्वरूप अंग्रेजी हुकूमत ने बंगाल विभाजन के फैसले को सन 1912 में वापस ले लिया सुरेंद्रनाथ बनर्जी गोपाल कृष्ण गोखले और सरोजिनी नायडू जैसे उभरते नेताओं के संरक्षक भी  बने थे वह कांग्रेस के अंदर वरिष्ठ नेताओं में से एक थे और उनका मत था कि अंग्रेजी हुकूमत के साथ बैठकर बातचीत का रास्ता अपनाना चाहिए उनका विचार गरम पंथी दल से बिल्कुल विपरीत था जो क्रांति के साथ-साथ चाहते थे वे स्वदेशी आंदोलन के बहुत बड़े प्रचारक और प्रवर्तक थे उन्होंने लोगों से विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार और स्वदेशी अपनाने का आग्रह किया स्वाधीनता आंदोलन के दौरान नरमपंथी नेताओं के घटते प्रभाव ने सुरेंद्रनाथ बनर्जी के प्रभाव को भी कम कर दिया

उन्होंने 1909 के “मोर्ले मिंटो सुधारों” की सराहना की जबकि देश के बड़े हिस्से और राष्ट्रवादी राजनेताओं द्वारा इसका घोर विरोध हुआ वह महात्मा गांधी के “सविनय अवज्ञा” जैसे राजनीतिक अधिकारों से भी सहमत नहीं थे बंगाल सरकार ने मंत्री पद स्वीकार करने के बाद उनकी घोर आलोचना की थी और सन 1923 के चुनाव में वे स्वराज पार्टी के विधान चंद्र राय से हार गए और उनका राजनीतिक जीवन लगभग समाप्त हो गया अंग्रेजी राज के समर्थन के लिए उन्हें नाइट की पदवी से सुशोभित किया गया था बंगाल सरकार में मंत्री रहते हुए उन्होंने कोलकाता नगर निगम को ज्यादा लोकतांत्रिक बनाया था | सुरेंद्रनाथ बनर्जी का जीवन परिचय |

भारतीय राष्ट्रवाद के निर्माता 

पहले ‘इंडियन नेशनल एसोसिएशन ‘और फिर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के माध्यम से सुरेंद्रनाथ बनर्जी ने भारत में राष्ट्रवाद विकसित करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया था उन्होंने देश के शासन में अधिक हिस्सा दिए जाने के लिए दशको तक संघर्ष किया पर बदलते समय के साथ आंदोलन स्वाधीनता की मांग में बदल गया जो सुरेंद्रनाथ की कल्पना से परे था उनका अंतिम समय आते-आते स्वाधीनता आंदोलन का स्वरूप बिल्कुल ही परिवर्तित हो चुका था उनका नाम उन नेताओं में शुमार है जिन्होंने देश में राष्ट्रीय आंदोलन की नींव रखी थी 

सुरेंद्रनाथ बनर्जी की मृत्यु

 सन 1923 के चुनाव में स्वराज पार्टी के विधान चंद्र राय से हारने के बाद वे सार्वजनिक जीवन से प्राय अलग रहे और 6 अगस्त 1925 को बैरकपुर में उनका निधन हो गया था | सुरेंद्रनाथ बनर्जी का जीवन परिचय |

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