त्रंयबकेश्वर मंदिर का इतिहास

त्रंयबकेश्वर मंदिर का इतिहास, त्रंयबकेश्वर मंदिर का निर्माण , त्रंयबकेश्वर मंदिर की पौराणिक कथा, त्रयंबकेश्वर मंदिर की विशेषता

त्रंयबकेश्वर मंदिर का इतिहास 

त्रयंबकेश्वर प्राचीन हिंदू मंदिर है जो भारत में नासिक शहर से 28 किलोमीटर और नासिक रोड से तकरीबन 40 किलोमीटर दूर त्रंबकेश्वर तहसील के ‘त्रयंबक’ शहर में बना हुआ है यह मंदिर भगवान शिव के उन 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है जिन्हें भारत में सबसे पवित्र और वास्तविक माना जाता है फिर त्रयंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग की सबसे अद्भुत और असाधारण बात तो यह है कि इसके तीन मुख है एक भगवान ब्रह्मा, भगवान विष्णु और भगवान रुद्र का है इस लिंग के के चारों ओर एक रत्नों से जड़ा गया मुकुट रखा गया है जिसे त्रिदेव के मुखौटे के रूप में देखा जाता है

कहा जाता है कि यह मुकुट पांडवों के समय से यहीं पर है इसमें हीरा, पन्ना और कई कीमती रत्न जड़े हुए हैं त्रयंबकेश्वर मंदिर में इसको सिर्फ सोमवार के दिन 4:00 से 5:00 बजे तक दिखाया जाता है यह मंदिर “ब्रह्मगिरि पर्वत” की तलहटी में स्थित है गोदावरी नदी के किनारे बने त्रयंबकेश्वर मंदिर का निर्माण काले पत्थरों से किया गया है इस मंदिर की वास्तुकला बहुत ही अद्भुत और अनोखी है इस मंदिर की पंचकोशी में कालसर्प शांति, त्रिपिंडी विधि और नारायण नागबली पूजा आदि कराई जाती है जिन का आयोजन भक्तगण अपनी मनोकामना पूर्ण करने के लिए करवाते हैं | त्रंयबकेश्वर मंदिर का इतिहास |

 त्रंयबकेश्वर मंदिर का निर्माण 

इस प्राचीन मंदिर का निर्माण तीसरे पेशवा “नाना साहेब पेशवा” ने करवाया था इस मंदिर का जीर्णोद्धार सन 1755 में शुरू हुआ था इस काम का अंत सन 1786 में संपन्न हुआ था हुआ इस प्राचीन भव्य मंदिर के निर्माण कार्य में लगभग 16 लाख रुपए खर्च किए गए थे जिसे उस समय काफी बड़ी रकम माना जाता था त्रंयबकेश्वर मंदिर की भव्य इमारत सिंधु और शैली का अद्भुत नमूना है इस मंदिर के भीतर एक गर्भ ग्रह है जिस में प्रवेश करने के बाद शिवलिंग की एक आंख दिखाई देती है यदि इस मंदिर में प्रवेश करने के बाद ध्यान से देखा जाए तो इसके अंदर तीन लिंग दिखाई देते हैं इन तीनों लोगों को त्रिदेव कहा जाता है इन्हें ब्रह्मा, विष्णु ,महेश का अवतार माना जाता है

प्रात काल में पूजा होने के बाद इस अग्य पर पंचमुखी मुकुट चढ़ा दिया जाता है त्रंयबकेश्वर मंदिरके परिसर में एक कुंड बना हुआ है जिसका नाम कुशावत है जो गोदावरी नदी का एक स्त्रोत है माना जाता है कि ब्रह्मगिरि पर्वत से गोदावरी नदी बार-बार लुप्त हो जाया करती थी गोदावरी के पैरों को रोकने के लिए गौतम ऋषि ने एक कुशा की मदद लेकर गोदावरी को बंधन में बांध दिया था उस दिन के बाद इस कुंड में हमेशा पानी रहता है इस कुंड को कुशाव्रत तीर्थ के नाम से जाना जाता है

शिव पुराण के अनुसार ब्रह्मगिरि पर्वत की चोटी पर पहुंचने के लिए 700 चौड़ी सीढ़ियां बनाई गई है इन सीढ़िओ पर चढ़ने के उपरांत राम कुंड और लक्ष्मण कुंड मिलते हैं और शिखर के ऊपर पहुंचने पर गोमुख से निकलती हुई भगवती गोदावरी के दर्शन होते हैं | त्रंयबकेश्वर मंदिर का इतिहास |

त्रंयबकेश्वर मंदिर की पौराणिक कथा 

पुराणों के अनुसार एक बार महर्षि गौतम के तपोवन में रहने वाले ब्राह्मणों की पत्नियां गौतम ऋषि की पत्नी अहिल्या से किसी बात पर नाराज हो जाती है वह सभी अपने पतियों को गौतम ऋषि का अपमान करने के लिए प्रेरित करती है इसके बाद उन ब्राह्मणों ने इसके लिए भगवान गणेश की आराधना की थी और उनकी आराधना से प्रसन्न होकर गणेश जी ने उनसे वर मांगने के लिए कहा इसके बाद उन ब्राह्मणों ने भगवान गणेश से कहा कि किसी भी तरह से गौतम ऋषि को इस आश्रम से बाहर निकाल दीजिए इसके बाद गणेश जी को विवश होकर उन ब्राह्मणों की बात माननी पड़ी इसके बाद गणेश जी ने एक दुर्बल गाय का रूप धारण किया और गौतम ऋषि के खेत में जाकर फसल खाने लगी

गाय को फसल खाता देख गौतम ऋषि हाथ में डंडा लेकर उसे वहां से भगाने के लिए उसके पीछे दौड़े उनके डंडे का स्पर्श होते ही गाय वहीं पर गिर कर मर गई इसके बाद सभी ब्राह्मण एकत्रित होकर उसे हत्यारा कहकर गौतम ऋषि का अपमान करने लगे इसके बाद गौतम ऋषि उन ब्राह्मणों से अपने उद्धार का उपाय पूछने लगे इसके बाद उन ब्राह्मणों ने कहा कि गौतम तुम अपने पाप को सर्वत्र बताते हुए तीन बार पृथ्वी की परिक्रमा करो और फिर लौटकर यहां 1 महीने तक व्रत करो इसके बाद ब्रह्मगिरि पर्वत की 101 बार परिक्रमा करो तभी तुम्हारी शुद्धि होगी तथा गंगा जी को लाकर उनके जल से स्नान करके एक करोड़ पार्थिव शिवलिंग लिंग से भगवान शिव जी की आराधना करो इसके बाद फिर से गंगा जी में स्नान करके इस ब्रह्मगिरि पर्वत की 11 बार परिक्रमा करो फिर 100 घरों के पवित्र जल से पार्थिव शिवलिंग को स्नान कराने से तुम्हारा उद्धार होगा इसके बाद भी गौतम ऋषि ने सारे कार्य पूरे कर के पत्नी के साथ भगवान शिवजी की आराधना की

इससे प्रसन्न होकर भगवान शिव जी ने उन्हें वर मांगने को कहा था तब गौतम ऋषि ने कहा भगवान मुझे गौ हत्या के पाप से मुक्त कर दीजिए तो भगवान शिव ने कहा गौतम तुम सर्वदा निष्पाप हो गौ हत्या का अपराध तुम पर छल पूर्वक लगाया गया था ऐसा करने पर तुम्हारे आश्रम के ब्राह्मणों को मैं दंड देना चाहता हूं किस पर गौतम ऋषि ने कहा उन्हीं के दुष्ट कार्य से मुझे आपके दुर्लभ दर्शन प्राप्त हुए हैं उन्हें मेरा परम समझकर आप उन पर क्रोध ना करें इसके बाद बहुत सारे देशों और देख उन्होंने वहां पर उपस्थित होकर गौतम ऋषि की बात का अनुवादन करते हुए भगवान शिव से सदा वहीं पर रहने की प्रार्थना की फिर भगवान शिव ने उन सब की बात मानकर वहां ‘त्रंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग’ के रूप में स्थापित  हो गए | त्रंयबकेश्वर मंदिर का इतिहास |

त्रयंबकेश्वर मंदिर की विशेषता

 त्रंबकेश्वर मंदिर में जब भगवान शिव की शाही सवारी निकाली जाती है तो वह दृश्य देखने लायक होता है इस अवसर त्रंबकेश्वर महाराज के पंचमुखी सोने के मुखोटे को पालकी में बैठा कर गांव में घुमाया जाता है फिर कुशा व्रत तीर्थ पर स्नान करा जाता है इसके बाद मुखोटे को वापस लाकर हीरे जड़े हुए स्वर्ण मुकुट को पहनाया जाता है यह पूरा दृश्य त्रंबकेश्वर महाराज के राज्याभिषेक के जैसा महसूस होता है इस यात्रा को देखना बेहद अलौकिक अनुभव है शिवरात्रि और श्रावण के सोमवार के दिन इस मंदिर में भक्तों की बहुत अधिक भीड़ होती है यहां पर आने वाले भक्त सुबह स्नान करने के बाद अपने आराध्य के दर्शन करते हैं और जिसके दर्शन मात्र से ही मनुष्य की सार्थकता महसूस होती है

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