वासुदेव शरण अग्रवाल का जीवन परिचय , वासुदेव शरण अग्रवाल का जन्म, साहित्यिक परिचय , वासुदेव शरण की मृत्यु
वासुदेव शरण अग्रवाल का जीवन परिचय
वासुदेव शरण अग्रवाल हिंदी साहित्य में निबंधकार के रूप में प्रसिद्ध है वासुदेव जी ने अपना पूरा जीवन साहित्यिक रचनाओं को संस्कृत और हिंदी में रचनाएं लिखने में व्यतीत किया थाअग्रवाल जी दिल्ली के राष्ट्रीय संग्रहालय के अध्यक्ष भी रहे तथा काशी हिंदू विश्वविद्यालय के भारतीय विश्वविद्यालय में पुरातन एवं प्राचीन इतिहास विभाग के अध्यक्ष भी रहे हैं अग्रवाल जी की भाषा शब्द तथा परिष्कृत खड़ी बोली है इनकी भाषा सरल सुबोध एवं व्यवहारिक लगती थी | वासुदेव शरण अग्रवाल का जीवन परिचय |
वासुदेव शरण अग्रवाल का जन्म
डॉ अग्रवाल का जन्म 7 अगस्त सन 1904 ईस्वी में मेरठ जनपद के खेड़ा गांव में हुआ था इनके माता-पिता लखनऊ में रहते थे इनका बचपन लखनऊ में व्यतीत हुआ और यही इनकी शिक्षा भी हुई थी इन्होंने काशी हिंदू विश्वविद्यालय से बी. ए. तथा लखनऊ विश्वविद्यालय से एम. ए. की परीक्षा उत्तीर्ण की थी इनकी रूचि वास्तव में अध्ययन और पुरातत्व में थी और लखनऊ विश्वविद्यालय से ही पी.एच.डी. की उपाधि प्राप्त की थी की इसके बाद इन्होंने लखनऊ से ही डी. लिट की उपाधि प्राप्त की थी सन 1952 में लखनऊ विश्वविद्यालय में राधा कुमुद मुखर्जी व्याख्याननिधि की ओर से व्याख्याता नियुक्त हुए इन्होंने पाली, संस्कृत एवं अंग्रेजी भाषाओं का गहन अध्ययन करके विद्वान के रूप में प्रसिद्धि प्राप्त की थी इन्होंने काशी हिंदू विश्वविद्यालय में ‘पुरातत्व एवं प्राचीन इतिहास विभाग’ के अध्यक्ष और बाद में आचार्य पद को सुशोभित किया था | वासुदेव शरण अग्रवाल का जीवन परिचय |
वासुदेव शरण का साहित्यिक परिचय
डॉ अग्रवाल भारतीय संस्कृति पुरातत्व और प्राचीन इतिहास के प्रकांड पंडित थे इन्होंने उत्कृष्ट कोटि के अनुसंधानात्मक निबंधों की रचना की थी इन्होंने अपने निबंधों में प्रागैतिहासिक, वैदिक एवं पौराणिक धर्म का उद्घाटन किया इन्होंने बाणभट्ट के” हर्ष चरित” का सांस्कृतिक अध्ययन प्रस्तुत किया था डॉ वासुदेव शरण अग्रवाल ने निबंध, शोध एवं संपादन के क्षेत्र में महत्वपूर्ण कार्य किया
1.निबंध -इन के कुछ महत्वपूर्ण निबंध संग्रह है जैसे कि- ‘पृथ्वी पुत्र, ‘कल्प लता, ‘कला और संस्कृति, ‘कल्पवृक्ष, भारत की एकता आदि
2. शोध- डॉ अग्रवाल ने “पाणिनिकालीन” भारत वर्ष” शोध में काम किया था
3. ग्रंथ- डॉ अग्रवाल के आलोचनात्मक ग्रंथ है- “पद्मावत की संजीवनी व्याख्या”, हर्षचरित का सांस्कृतिक अध्ययन”भारतीय संस्कृति और पुरातत्व के विद्वान डॉ वासुदेव शरण अग्रवाल का निबंध साहित्य अत्यधिक समृद्ध है
4. भाषा शैली- वासुदेव शरण अग्रवाल की भाषा शुद्ध और परिष्कृत खड़ी बोली है इनके निबंधों में हमें विचारात्मक, व्याख्यात्मक, भावनात्मक तथा सूक्ति कथन शैलियों के दर्शन होते हैं
वासुदेव शरण की मृत्यु
भारतीय संस्कृत और पुरातत्व का यह महान पंडित एवं साहित्यकार 27 जुलाई सन्1967 ईस्वी में परलोक सिधार गया वासुदेव जी ने अपना पूरा जीवन साहित्यिक रचनाओं को संस्कृत और हिंदी में रचनाएं लिखने में व्यतीत किया इनकी भाषा खड़ी बोली थी हिंदी में रचना लिखने के बाद इन्हें संस्कृत में निबंध ग्रंथ अध्याय और अनुवाद लिखने का शौक था इन्होंने अपने कई प्रचलित कविताओं को संस्कृत में अनुवाद किया है अग्रवाल जी ने पुरातत्व को ही अपना वर्ण विषय बनाया और निबंधों के ज्ञान से अपने ज्ञान को अभिव्यक्त किया इनके निबंधों में भारतीय संस्कृति का उदात रूप व्यक्त हुआ है हिंदी साहित्य के इतिहास में यह अपनी मौलिकता विचारशील और विद्वता के लिए चिरस्मरणीय रहेंगे | वासुदेव शरण अग्रवाल का जीवन परिचय |